प्रोजेक्ट वारहाउंड (Rahasyamayi Kahani)

rahasyamayi kahani

सड़क किनारे लगी हुई चाय की दुकान पर हल्की-हल्की बारिश गिर रही थी। भीड़ कम थी, पर चाय की महक के साथ दुकान में बैठे कुछ लोग अपनी-अपनी दुनिया में डूबे हुए थे। एक कोने में, बालों में हल्का सा सफेदी का निशान लिए, आँखों के नीचे थकावट की गहरी लकीरें लिए बैठा था - निखिल सहाय। दिल्ली का जाना-माना वकील, जिसने अपने जीवन में न जाने कितने हाई प्रोफाइल केस लड़े थे। आज भी उसके हाथों में एक केस फाइल थी, लेकिन उसकी आँखें फाइल पर नहीं, बल्कि धुंधली होती सड़क पर टिकी थीं। उसकी आँखों में कुछ बेचैनी थी, कुछ अनकहा डर।

फाइल में बंद था 'आदित्य मल्होत्रा मर्डर केस'—एक परफेक्ट मर्डर, जिसमें न गवाह थे, न सबूत। आदित्य मल्होत्रा, एक सफल बिजनेसमैन, जो रात के अंधेरे में अपने घर में मरा पाया गया था। गोली सीधे उसके दिल में लगी थी, मगर गन न मिली, न कोई उंगलियों के निशान। सीसीटीवी फुटेज था, लेकिन उसमें किसी संदिग्ध का कोई सुराग नहीं था। घर का दरवाज़ा अंदर से लॉक था, खिड़कियाँ बंद। पुलिस के लिए यह केस ऐसा था जिसे हल करना नामुमकिन था, लेकिन निखिल को वो केस चुनौती की तरह मिला था।

निखिल हमेशा से सच के पीछे भागने वाला इंसान था। उसे यकीन था कि हर परफेक्ट मर्डर के पीछे कोई न कोई गलती छूट जाती है, कोई न कोई सुराग। पर इस केस में ऐसा कुछ नहीं था। हत्यारा जैसे हवा में गायब हो गया था।

कई दिनों तक निखिल ने उस केस की हर कड़ी को बेहद बारीकी से परखा, हर छोटी से छोटी बात को ध्यान से देखा और हर पहलू को समझने की कोशिश की। केस एक पेचीदा जाल जैसा लगने लगा था, पर सतह पर सब कुछ साफ-सुथरा दिख रहा था। आदित्य मल्होत्रा का जीवन एक खुली किताब जैसा ही प्रतीत होता था—कम से कम ऊपर से देखने पर। एक सफल बिजनेसमैन, जिसकी ज़िंदगी में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं थे। उसके कामकाज में न कोई विवाद सामने आया, न कोई व्यक्तिगत दुश्मनी।

आदित्य के करीबी रिश्तों की भी निखिल ने गहराई से जांच की। उसकी पत्नी, सोनम मल्होत्रा, केस में एक अहम किरदार थी। आदित्य की मौत के वक्त सोनम घर में नहीं थी, और पुलिस की जांच के अनुसार, वो किसी व्यापारिक कॉन्फ्रेंस के सिलसिले में शहर से बाहर थी। उसके लोकेशन की पुष्टि सीसीटीवी कैमरों और अन्य तकनीकी सबूतों से हो चुकी थी। पुलिस ने उसे तुरंत क्लीन चिट दे दी, और यह मान लिया गया कि सोनम का इस हत्या से कोई लेना-देना नहीं है। वह आदित्य से बेहद प्यार करती थी, और उनके बीच किसी तरह के मतभेद की भी खबर नहीं थी। सब कुछ सामान्य दिखता था।

फिर भी, निखिल के लिए यह केस इतना सरल नहीं था। आदित्य का कोई करीबी दुश्मन नहीं था। वह एक खुशहाल जिंदगी जी रहा था, व्यापारिक मोर्चे पर भी स्थिर था। निखिल ने आदित्य के बिजनेस पार्टनर्स और प्रतिद्वंद्वियों की भी जांच की, पर वहाँ से भी कोई ठोस सुराग हाथ नहीं आया। आदित्य की बिजनेस लाइफ में न कोई वित्तीय संकट था, न कोई विवाद, जो उसकी मौत का कारण बन सके। पुलिस की जांच में भी किसी व्यापारिक दुश्मनी का कोई संकेत नहीं मिला था।

लेकिन कुछ था जो निखिल को लगातार खटक रहा था। एक सफल, स्थिर और शांत जीवन जीने वाले व्यक्ति की इस तरह अचानक हत्या का कोई ठोस कारण सामने न आना उसे असामान्य लग रहा था। केस के दौरान कई बार ऐसा महसूस हुआ, जैसे कोई अहम जानकारी छिपी हुई है, लेकिन सतह पर जो दिख रहा था, वो उसके खिलाफ था। आदित्य का जीवन जितना सीधा और सरल लग रहा था, उतना शायद था नहीं। निखिल का अनुभव कहता था कि इतने सीधे दिखने वाले मामलों के पीछे अक्सर कुछ न कुछ गहरी बात छिपी होती है।

निखिल ने केस से जुड़े हर शख्स से मिलने की कोशिश की—सोनम के परिवार, आदित्य के दोस्तों, कर्मचारियों, और यहां तक कि पड़ोसियों से भी। लेकिन हर कोई यही कहता था कि आदित्य और सोनम की जिंदगी एकदम खुशहाल और सामान्य थी। दोनों एक-दूसरे का सम्मान करते थे, और उनकी शादी में कोई परेशानी नहीं थी।

पर निखिल का मन अब भी शांत नहीं था। सोनम की लोकेशन पक्की होने के बावजूद, उसकी आँखों में एक अजीब सा खालीपन था जब उसने पुलिस और निखिल से बातचीत की थी। यह खालीपन सिर्फ दुख से नहीं आया था, उसमें एक तरह का अनकहा डर भी था। सोनम की आँखें जैसे कुछ छिपा रही थीं, कुछ ऐसा जो निखिल समझ नहीं पा रहा था। निखिल ने अपनी फाइल्स में लिखे सारे बयान दोबारा पढ़े, लेकिन कहीं भी ऐसा कुछ नहीं मिला जो सोनम को शक के दायरे में ला सके। पर उस महिला के व्यवहार में एक ठंडी, अनकही बेचैनी छिपी हुई थी।

उसकी यह बात निखिल को परेशान कर रही थी—क्या सोनम को कुछ पता था, जो वो किसी से कह नहीं रही थी? या फिर क्या आदित्य के जीवन में कोई ऐसा राज़ था, जिसे वो छिपा रही थी? निखिल को यह भी शक हुआ कि शायद सोनम का कोई छुपा हुआ अतीत हो, जो इस हत्या से जुड़ा हो। उसने सोनम के अतीत के बारे में भी छानबीन की, लेकिन वहाँ भी कुछ संदिग्ध नहीं निकला।

फिर, निखिल ने एक अलग दृष्टिकोण से जांच शुरू की। उसे समझ आया कि अगर आदित्य की हत्या एक ‘परफेक्ट मर्डर’ है, तो हत्यारा इतना होशियार हो सकता है कि उसने खुद को पूरी तरह छिपा रखा हो। कोई छोटी सी गलती या कोई मामूली सुराग इस पूरे मामले का ताला खोल सकता था। निखिल ने आदित्य के जीवन के हर पहलू को फिर से खंगालने का फैसला किया। आदित्य की रोजमर्रा की आदतें, उसके यात्रा के रूट, उसकी मेलजोल के लोग—हर बात पर ध्यान दिया।

इस दौरान उसे आदित्य के कुछ पुराने दोस्तों और व्यापारिक साझेदारों के साथ हुई पुरानी मुलाकातों की जानकारी मिली, जहाँ आदित्य कुछ दिनों से तनाव में था। आदित्य कुछ ऐसी बातों का जिक्र कर रहा था जो उसे बेचैन कर रही थीं, लेकिन उसने कभी स्पष्ट रूप से किसी खतरे का जिक्र नहीं किया था। एक दोस्त ने कहा था कि आदित्य कुछ दिनों से असामान्य रूप से शांत था, जैसे किसी बड़े रहस्य को छिपा रहा हो।

यह सब बातें निखिल को और उलझा रही थीं। जितनी गहराई से वो इस केस में जाता, उतनी ही अजीब और रहस्यमयी बातें सामने आतीं। आदित्य का यह व्यवहार अचानक नहीं बदला था। कुछ तो था, जो आदित्य के जीवन में हो रहा था—पर क्या?

जाँच के दौरान एक और दिलचस्प पहलू सामने आया—आदित्य और सोनम के बीच के रिश्ते की असली तस्वीर। ऊपर से देखने पर आदित्य और सोनम का रिश्ता खुशहाल था, लेकिन कुछ पुराने दोस्तों और एक-दो पारिवारिक लोगों ने इशारों-इशारों में यह ज़िक्र किया कि दोनों के बीच पिछले कुछ समय से एक अजीब सा तनाव था। यह तनाव बाहरी तौर पर दिखाई नहीं देता था, लेकिन जो लोग उनके बेहद करीब थे, उन्हें इस बात का अंदाज़ा था।

अब सवाल यह था कि इस तनाव का कारण क्या था? क्या यह तनाव सिर्फ आदित्य की व्यावसायिक परेशानियों का नतीजा था, या इसमें सोनम का भी कोई रोल था? निखिल को अब यह लगने लगा था कि सोनम मल्होत्रा उतनी निर्दोष नहीं है, जितनी दिखती है।

निखिल को सोनम की आंखों में कुछ ऐसा दिखा, जो पुलिस नहीं देख पाई थी—एक अजीब सा खालीपन, जैसे वो सब कुछ जानते हुए भी कुछ नहीं जानना चाहती। पर सबूतों की कमी के कारण निखिल उसे दोषी साबित नहीं कर सकता था। उसे अपने सवालों के जवाब चाहिए थे, लेकिन हर रास्ता उसे एक बंद दरवाजे तक ले जा रहा था।

एक रात, थका हुआ और निराश निखिल अपने घर लौटा। घर में अंधेरा था, और उस अंधेरे में उसके अंदर का अकेलापन और भी बढ़ गया था। वो शराब की एक बोतल खोलता है, सोचता है कि शायद कुछ पीने से दिमाग शांत होगा। जैसे ही वो पहली घूंट लेता है, उसका फोन बजता है। स्क्रीन पर नाम दिखता है—"अज्ञात नंबर"। वो फोन उठाता है।

"तुम सच से दूर भाग रहे हो, निखिल," एक ठंडी और खुरदरी आवाज़ आई।

"कौन हो तुम?" निखिल ने पूछा।

"नाम में क्या रखा है, सवाल यह है कि तुम क्या खोज रहे हो?"

"आदित्य मल्होत्रा का कातिल।"

"कातिल तुमसे ज्यादा दूर नहीं है। तुम्हें सिर्फ अपने आस-पास देखना होगा... ।"

फोन कट जाता है। निखिल का दिल जोर-जोर से धड़कने लगता है। ये आवाज़ अजीब थी, जैसे कहीं से उसे गहराई से जानने वाली कोई शख्स हो। और ये बात... 'अपने आस-पास देखो'—इसका क्या मतलब था?

अगले कुछ दिनों में निखिल और भी उलझने लगा। उसे ऐसा लगने लगा कि इस केस में कुछ ऐसा छिपा है, जो सीधा उसके अतीत से जुड़ा हुआ है। जैसे-जैसे वो केस की गहराई में जाता, वैसे-वैसे उसे अजीब सपने आने लगे। सपने, जो उसे उसके बचपन की याद दिलाते—उसके पिता, जो उसे और उसकी माँ को छोड़कर चले गए थे। वो यादें, जिनसे निखिल ने खुद को दूर कर लिया था, अब लौटकर उसके सामने आने लगीं।

एक शाम, वो पुराने फाइल्स खंगाल रहा था, तभी उसे एक कागज़ का टुकड़ा मिला। उस टुकड़े पर लिखा था—"निखिल, सच्चाई का सामना करने का वक्त आ गया है। वो अतीत, जिसे तुम भूल चुके हो, वही तुम्हारा भविष्य है।"

निखिल के हाथ कांपने लगे। उसे याद नहीं आ रहा था कि उसने ये नोट कब और कहाँ रखा था। उसने गहरी सांस ली और फैसला किया कि अब वो इस केस को अलग नजरिए से देखेगा। कुछ न कुछ जुड़ा हुआ था, लेकिन उसे दिख नहीं रहा था।

सोनम मल्होत्रा से दोबारा मुलाकात जरूरी थी। इस बार निखिल ने सीधा सवाल किया, "क्या आदित्य के बारे में कुछ ऐसा था जो तुमने छिपाया?"

सोनम की आंखों में वही पुराना खालीपन था, लेकिन इस बार उसमें कुछ और भी था—डर। उसने धीरे से कहा, "तुम्हें सच में लगता है कि यह एक मर्डर था?"

निखिल चौंक गया। "तो और क्या हो सकता है?"

सोनम ने एक पल के लिए अपनी सांसें रोकीं, फिर कहा, "आदित्य किसी से डरता था... या शायद किसी चीज़ से। वो कुछ दिन से कह रहा था कि उसे कोई देख रहा है। पर मैंने कभी किसी को नहीं देखा। उसकी मौत के दिन भी... सब कुछ सामान्य था, फिर अचानक ऐसा हुआ। मैं नहीं जानती कि कैसे।"

निखिल को सोनम की बातें अजीब लगीं, लेकिन एक बात साफ थी—आदित्य की मौत के पीछे कुछ और भी था। वो सिर्फ एक साधारण मर्डर नहीं था।

उस रात निखिल को फिर वही अज्ञात नंबर से फोन आया।

"सच के करीब आ रहे हो," आवाज़ ने कहा।

"तुम कौन हो?" निखिल ने गुस्से में पूछा।

"मैं वो हूँ, जो तुम्हें सच्चाई दिखा रहा है। लेकिन क्या तुम उस सच्चाई को सह सकोगे?"

"सच्चाई क्या है?" निखिल अब और धैर्य नहीं रख सकता था।

"सच यह है कि आदित्य सिर्फ पहला मोहरा था। असली खेल तो तुम्हारे साथ है, निखिल।"

फोन कट गया। निखिल को अब पूरी तरह से यकीन हो गया था कि ये केस सिर्फ आदित्य की मौत तक सीमित नहीं है। ये उससे कहीं ज्यादा बड़ा था। ये उसके अतीत से जुड़ा था, और अब उसका सामना करना ही था।

निखिल ने अपने पुराने घर का रुख किया। वो घर, जहाँ उसने अपना बचपन बिताया था। जहाँ से उसके पिता एक दिन अचानक गायब हो गए थे। घर के अंदर कदम रखते ही उसकी सांसें भारी हो गईं। हर कोना उसे बीते समय की याद दिला रहा था। वो कमरे के कोने में रखी एक पुरानी अलमारी के पास गया, जिसे उसने सालों से नहीं खोला था।

अलमारी खोलते ही एक पुराना फ़ाइल गिरा। फ़ाइल पर उसके पिता का नाम था—"अशोक सहाय"। उसकी उंगलियाँ काँपने लगीं, पर उसने फ़ाइल खोली। अंदर कई दस्तावेज़ थे, और उनमें से एक था एक सीक्रेट प्रोजेक्ट का जिक्र, जो उसके पिता ने आदित्य मल्होत्रा के पिता के साथ मिलकर किया था। उस प्रोजेक्ट के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी, पर इतना साफ था कि यह प्रोजेक्ट खतरनाक था।

निखिल को समझ आ गया कि आदित्य की मौत और उसके पिता के गायब होने के बीच कोई गहरा कनेक्शन था। इस प्रोजेक्ट के कारण ही आदित्य मरा था, और शायद उसके पिता भी इसी कारण गायब हुए थे।

निखिल के काँपते हुए हाथों में दस्तावेज़ थे। उसकी आँखें बार-बार "अशोक सहाय" के नाम पर टिक रहीं थीं। पिता का नाम देखकर दिल के अंदर का हर जज्बात बाहर आना चाह रहा था, पर अब उसे अपने निजी भावों को अलग रखना था। दस्तावेज़ में दफन उस अतीत का सामना करना ही था।

उसने फाइल के पन्ने पलटे, और हर पन्ने के साथ एक नई सच्चाई सामने आती गई। यह कोई साधारण प्रोजेक्ट नहीं था, बल्कि एक गुप्त सरकारी रक्षा परियोजना थी, जिसका उद्देश्य एक बेहद खतरनाक और आधुनिक हथियार का विकास करना था। इस प्रोजेक्ट का नाम था—'प्रोजेक्ट वारहाउंड'। यह एक ऐसा हथियार था जो किसी भी बड़े शहर को कुछ ही मिनटों में तबाह कर सकता था।

अशोक सहाय, निखिल के पिता, एक प्रमुख वैज्ञानिक थे, जो इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बने थे। आदित्य मल्होत्रा के पिता, कुमार मल्होत्रा, इस प्रोजेक्ट के वित्तीय संरक्षक और तकनीकी सहयोगी थे। शुरुआत में यह प्रोजेक्ट केवल विज्ञान की प्रगति और देश की सुरक्षा के उद्देश्य से चलाया जा रहा था, लेकिन धीरे-धीरे अशोक सहाय को इस बात का एहसास हुआ कि इस प्रोजेक्ट के पीछे केवल देश की सुरक्षा नहीं, बल्कि इससे जुड़ी कुछ निजी और राजनीतिक मंशाएं भी थीं।

कुमार मल्होत्रा जैसे प्रभावशाली उद्योगपति और कुछ अन्य सरकारी अधिकारियों ने इस परियोजना का दुरुपयोग शुरू कर दिया था। इस हथियार को बेचने और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शक्तियों के खेल में इस्तेमाल करने की योजना बनने लगी थी। यह एक वैश्विक राजनीति और पैसे का गंदा खेल था, जिसमें अशोक सहाय और कुमार मल्होत्रा ने एक खतरनाक सीमा पार कर ली थी।

लेकिन अशोक सहाय इस खेल का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे। उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य कुछ और ही था। जब उन्होंने इस प्रोजेक्ट को रोकने की कोशिश की और कुमार मल्होत्रा से टकराव लिया, तभी उनके जीवन की दिशा ही बदल गई।

अशोक सहाय ने एक रात अपने सारे दस्तावेज़ और सबूत इकट्ठे किए और घर से निकलने की कोशिश की, लेकिन उसी रात उनका अचानक से गायब हो जाना परिवार के लिए सबसे बड़ा झटका था। निखिल के जीवन का वह काला दिन अब धीरे-धीरे समझ में आने लगा था। प्रोजेक्ट वारहाउंड की सच्चाई जानने वाले को ज़िंदा नहीं छोड़ा जा सकता था, और अशोक सहाय को ख़ामोश कर दिया गया था। निखिल को अब पूरा यकीन हो गया था कि उसके पिता को इस खतरनाक षड्यंत्र के कारण गायब कर दिया गया था।

उस वक्त निखिल सिर्फ 12 साल का था, और उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके पिता की मौत के पीछे इतनी गहरी साजिश हो सकती है। लेकिन आज, इतने सालों बाद, उसे उस साजिश की हर परत खुलती नज़र आ रही थी। आदित्य मल्होत्रा की मौत भी इसी सिलसिले की एक कड़ी थी, क्योंकि आदित्य को भी अपने पिता के इस प्रोजेक्ट के बारे में सब कुछ पता था। शायद उसने भी इसे रोकने की कोशिश की, और उसकी यह कोशिश उसे मौत के करीब ले आई।

निखिल अब पूरी तरह से तैयार था सच्चाई का सामना करने के लिए। उसने अपने सारे पुराने कनेक्शन इस्तेमाल किए और उस सीक्रेट प्रोजेक्ट की और भी जानकारी निकाली। यह एक खतरनाक हथियार बनाने का प्रोजेक्ट था, जो दशकों पहले शुरू हुआ था, और इसके कारण कई जानें गई थीं। उसके पिता ने इस प्रोजेक्ट को बीच में ही रोकने की कोशिश की थी, लेकिन इसके नतीजे में उन्हें गायब होना पड़ा।

निखिल को पता चला कि इस प्रोजेक्ट से जुड़े दस्तावेज़ अब भी कहीं गुप्त रूप से रखे गए थे। इस हथियार का असली ब्लूप्रिंट अभी भी अस्तित्व में था, और यही कारण था कि आदित्य की हत्या की गई। कुमार मल्होत्रा की मौत के बाद, आदित्य ने इस प्रोजेक्ट के काले पक्ष को उजागर करने की ठान ली थी, लेकिन इससे पहले कि वो कुछ कर पाता, उसे चुप करा दिया गया।

निखिल ने इस मामले में अपने एक पुराने दोस्त, एसीपी रोहित यादव से संपर्क किया। रोहित एक तेजतर्रार पुलिस अधिकारी था, जिसे राजनीति और उच्च अधिकारियों से लड़ने में महारत हासिल थी। उसने निखिल की बातों को गंभीरता से लिया और इस गुप्त प्रोजेक्ट की जांच में मदद करने के लिए तैयार हो गया।

जैसे-जैसे निखिल और रोहित ने मामले की तहकीकात शुरू की, वैसे-वैसे सामने आने लगा कि प्रोजेक्ट वारहाउंड अब भी जिंदा था। इसे नए सिरे से चालू किया जा रहा था, और इसका संचालन कुछ बड़े राजनीतिक और उद्योगपतियों के गठजोड़ के तहत हो रहा था। इस प्रोजेक्ट को चालू रखने के लिए आदित्य मल्होत्रा की हत्या एक मजबूरी बन गई थी, क्योंकि आदित्य अपने पिता के गुनाहों को उजागर करना चाहता था।

लेकिन असली झटका तब लगा, जब निखिल को पता चला कि इस साजिश के पीछे सिर्फ कुमार मल्होत्रा नहीं थे। इसमें सरकार के उच्च स्तर के कुछ अधिकारी और रक्षा विभाग के बड़े नाम भी शामिल थे, जिनका उद्देश्य इस हथियार को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचना था। निखिल को यह भी एहसास हुआ कि आदित्य के मरने से पहले उसने कुछ सबूत जुटा लिए थे, जिन्हें उसने कहीं छिपा दिया था। आदित्य की मौत की असली वजह यही सबूत थे, जो इस परियोजना को उजागर कर सकते थे।

अब निखिल के सामने सबसे बड़ा सवाल था—क्या वो उन सबूतों को ढूंढ पाएगा, जिनकी तलाश में आदित्य मारा गया था? या फिर वो भी अपने पिता की तरह इस साजिश का शिकार हो जाएगा?

रोहित यादव के साथ मिलकर निखिल ने आदित्य के सभी कनेक्शनों, पुराने बैंक खातों, और गुप्त ठिकानों को खंगालना शुरू किया। कई हफ्तों की मशक्कत के बाद, आखिरकार उन्हें आदित्य के एक पुराने फार्महाउस में छिपा एक लॉकर मिला। उस लॉकर में वही दस्तावेज़ थे, जिन्हें आदित्य ने छिपाया था। ये दस्तावेज़ साफ़ तौर पर साबित कर रहे थे कि प्रोजेक्ट वारहाउंड कितना खतरनाक था और इसे किस तरह से व्यक्तिगत लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था।

अब निखिल के पास वो सबूत थे, जिनसे पूरे षड्यंत्र का पर्दाफाश हो सकता था। लेकिन यह आसान नहीं था। जिन शक्तिशाली लोगों के खिलाफ ये सबूत थे, वे किसी भी हद तक जा सकते थे निखिल को रोकने के लिए। अब उसे अपनी जान बचाने के साथ-साथ इन सबूतों को मीडिया और न्यायपालिका तक पहुँचाना था।

जब उन्होंने आदित्य मल्होत्रा के छिपाए गए दस्तावेज़ हासिल कर लिए, तो उन्हें समझ में आ गया कि अब उनका सामना एक बेहद शक्तिशाली और खतरनाक गिरोह से होने वाला था। इन दस्तावेज़ों में न केवल प्रोजेक्ट वारहाउंड की पूरी साजिश का खुलासा होता था, बल्कि इसमें शामिल सभी बड़े नामों की सूची भी थी—राजनीतिक हस्तियों, सेना के शीर्ष अधिकारियों, और कुछ प्रभावशाली उद्योगपतियों के नाम जो इस प्रोजेक्ट को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे।

निखिल और रोहित को अब इस बात का एहसास हो गया था कि इन दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करना उनके जीवन की सबसे बड़ी चुनौती होगी। वे जानते थे कि जितनी जल्दी हो सके, इन दस्तावेज़ों को मीडिया के पास पहुंचाना होगा, क्योंकि यही एकमात्र तरीका था जिससे वे खुद को बचा सकते थे और उन सभी लोगों को बेनकाब कर सकते थे, जिन्होंने इस घातक खेल में हिस्सा लिया था।

निखिल ने अपनी ओर से हर तैयारी कर ली थी। उसने अपने कुछ भरोसेमंद संपर्कों के जरिए सबसे बड़े न्यूज़ चैनलों और अखबारों से संपर्क किया। मीडिया को जब इन दस्तावेज़ों के बारे में पता चला, तो वे इस खबर को ब्रेकिंग न्यूज़ के तौर पर प्रसारित करने के लिए तैयार हो गए। सब कुछ प्लान के मुताबिक चल रहा था। निखिल और रोहित ने फैसला किया कि वे एक सार्वजनिक स्थान पर मिलेंगे, जहाँ सुरक्षा अधिक हो और मीडिया की मौजूदगी भी हो। इससे उन पर होने वाले किसी भी संभावित हमले को टालने का मौका मिलेगा।

लेकिन वे भूल गए थे कि जिन लोगों से उनका सामना था, वे हर मोड़ पर निगरानी कर रहे थे। जैसे ही निखिल और रोहित ने दस्तावेज़ों के साथ आगे बढ़ने की योजना बनाई, उनके विरोधियों को इस बात की भनक लग गई।

दस्तावेज़ों को सौंपने के दिन की रात घनी हो चुकी थी। दिल्ली के एक भीड़भाड़ वाले इलाके में उन्होंने पत्रकारों से मुलाकात का समय तय किया था। निखिल और रोहित कार में बैठे थे, दस्तावेज़ बैग में सुरक्षित थे। शहर की चकाचौंध के बीच उनकी कार सड़कों पर सरक रही थी। निखिल के दिल में बेचैनी थी, जबकि रोहित ने अपनी बंदूक तैयार कर ली थी। उन्हें शक था कि उनके दुश्मन कोई कदम उठा सकते हैं, लेकिन वे जानते थे कि अगर वे मीडिया तक पहुँच गए, तो सबकुछ सुरक्षित हो जाएगा।

उनका कारवां जैसे ही तय स्थान के पास पहुंचा, अचानक सड़क के दोनों ओर से दो बड़ी काले रंग की एसयूवी गाड़ियों ने उनकी कार को घेर लिया। इससे पहले कि निखिल और रोहित कुछ समझ पाते, गोलियों की बौछार शुरू हो गई। गोलियों की आवाज़ से सड़क पर हलचल मच गई। हर तरफ अफरातफरी फैल गई। एसयूवी में बैठे नकाबपोश लोग बुलेटप्रूफ जैकेट पहने हुए थे और उनके पास अत्याधुनिक हथियार थे।

रोहित ने तुरंत स्थिति की गंभीरता को भांप लिया। "झुको!" रोहित ने चिल्लाया और निखिल को नीचे धकेला। वह तेजी से गाड़ी के दरवाजे को खोलकर बाहर निकला और सामने की कार पर गोली चला दी। उसकी बंदूक की गोली सीधे ड्राइवर को लगी, जिससे एसयूवी अनियंत्रित हो गई और फुटपाथ पर जा लगी।

निखिल के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, पर उसने घबराने के बजाय रोहित के निर्देशों का पालन किया। "पीछे की गाड़ी से दूर हटो!" रोहित ने चिल्लाते हुए कहा। निखिल को यह समझते देर न लगी कि उनके पास ज्यादा वक्त नहीं था। उन्होंने तुरंत दूसरी दिशा में गाड़ी को तेजी से मोड़ा और ट्रैफिक की भीड़ में गायब होने की कोशिश की।

हमलावरों ने पीछा करना शुरू कर दिया। यह एक हाई-स्पीड चेस में बदल चुका था। गाड़ियाँ तेज़ी से घुमावदार सड़कों और गलियों में दौड़ने लगीं। पीछे से लगातार गोलियां बरस रही थीं। निखिल ने देखा कि एक गोली उनकी कार की खिड़की से होकर गुजरी और रोहित के कान के पास से निकल गई। "तुम ठीक हो?" निखिल ने चिल्लाते हुए पूछा।

"मैं ठीक हूँ! बस गाड़ी को तेजी से निकालो," रोहित ने कहा।

अचानक, निखिल ने एक चौंकाने वाला निर्णय लिया। उसने गाड़ी को एक सुनसान गलियारे में मोड़ा, जहाँ गाड़ियों की हलचल कम थी। यह एक पुराना औद्योगिक इलाका था, जहाँ कभी-कभार ही लोग आते थे। वहाँ पहुँचते ही उसने गाड़ी रोक दी। "तुम क्या कर रहे हो?" रोहित ने चौंककर पूछा।

"बस भरोसा रखो," निखिल ने कहा। निखिल ने पहले ही अपने संपर्कों से बात कर ली थी कि इस इलाके में कोई गुप्त रास्ता है, जो उन्हें वहां से बाहर निकाल सकता है। और उसकी योजना कार छोड़कर पैदल चलने की थी, क्योंकि हमलावर गाड़ियों पर निर्भर थे।

जैसे ही दोनों गाड़ी से बाहर निकले, उन्होंने देखा कि एसयूवी उनके पीछे आ चुकी थी। हमलावर तेजी से बाहर निकले और उनकी ओर बढ़ने लगे। पर तभी, निखिल और रोहित ने एक कूड़े के ढेर के पीछे छिपे कुछ बाइक सवार लोगों को इशारा किया। वे निखिल के दोस्त थे, जिन्हें उसने पहले ही इस स्थिति के लिए तैयार कर लिया था।

उन दोस्तों ने गोलीबारी शुरू कर दी। हमलावरों के होश उड़ गए। वे इतने बड़े प्रतिरोध के लिए तैयार नहीं थे। निखिल और रोहित बाइक पर सवार होकर तेजी से वहां से भाग निकले।

आखिरकार, निखिल और रोहित सुरक्षित जगह पर पहुँचे और दस्तावेज़ मीडिया को सौंप दिए। कुछ ही घंटों में यह खबर देश भर में आग की तरह फैल गई। न्यूज़ चैनलों ने ब्रेकिंग न्यूज़ चला दी—"प्रोजेक्ट वारहाउंड: देश के उच्च अधिकारियों की सबसे खतरनाक साजिश का खुलासा!"

मीडिया में हड़कंप मच गया। दस्तावेज़ों में इतनी गंभीर और संवेदनशील जानकारी थी कि सरकार और रक्षा प्रतिष्ठानों में हड़कंप मच गया। टीवी पर लाइव डिबेट्स चलने लगीं, समाचार पत्रों की हेडलाइन्स में यही खबर थी। साजिश में शामिल सभी बड़े नाम बेनकाब हो गए—कुछ राजनेता, शीर्ष सैन्य अधिकारी, और उद्योगपतियों की मिलीभगत का पर्दाफाश हो चुका था।

निखिल और रोहित की मेहनत रंग लाई। इस घातक हमले के बावजूद वे बच निकले और उन्होंने वह सच्चाई दुनिया के सामने ला दी, जिसे छुपाने के लिए इतने लोग मारे गए थे। सरकार के बड़े-बड़े चेहरे इस्तीफा देने पर मजबूर हुए। कुछ को गिरफ्तार किया गया, और मामले की उच्च स्तरीय जांच शुरू की गई।

निखिल ने आदित्य मल्होत्रा की हत्या और अपने पिता की गुमशुदगी का राज़ सुलझा लिया था। अब उसे एक संतोष था कि उसने अपने पिता के नाम को इंसाफ दिलाया।

इस पूरी लड़ाई के बाद, निखिल ने न केवल आदित्य मल्होत्रा के हत्यारों को सजा दिलाई, बल्कि अपने पिता की गुमशुदगी के पीछे का रहस्य भी सुलझा लिया।

पर ये सच्चाई बेहद कड़वी थी। निखिल ने महसूस किया कि उसकी लड़ाई सिर्फ एक परिवार के न्याय तक सीमित नहीं थी, बल्कि वह एक ऐसे तंत्र के खिलाफ खड़ा हो गया था जो ताकत, पैसे और राजनीति की धुरी पर चलता था।

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