गरीब किसान की कहानी: अनाज का बँटवारा | पार्ट - 2

graib kisan ki kahani part 2

अगले दिन सुबह जब रंजीत उठा, तो उसकी आंखों में हल्की बेचैनी और तनाव था। रात को जो कागजात मिले थे, वे उसके दिमाग में घूम रहे थे। जैसे ही वह अपने कमरे से आँख मिचता हुआ बाहर निकला मुंगेरी ने कहा, “बेटा जल्दी से मुंह हाथ धो कर कुछ खा लो, हमें खेत के लिए निकालना है और ये बुधन और नितेश अभी तक क्यों नहीं आया है? ”

बुधन का नाम सुनकर रंजीत को याद आया की वह तो बाँगों दा के साथ जितपुर निकल गया होगा। रंजीत असमंजस में था, कल उसके साथ हुए अपमान के कारण उसे खेत जाने का मन नही था लेकिन अगर वह खेत नही जाता है तो घर मे सब लोग परेशान हो जाएंगे।

अपने इस विचारों में उलझा हुआ उसने कहा, ”खेत का काम आज रहने दो, कल देखेंगे। बुधन आज काम पर नही आएगा। अगर कोई आदमी मिलता है तो कटाई मे लगा दीजिए।”

इसके बाद रंजीत ने नाश्ता किया और बिना ज्यादा वक्त गवाए, वो कागज उठाए जो उसने कल पिताजी से लिए थे और स्कूल के मास्टर शंकर प्रसाद के घर की ओर चल पड़ा। मास्टर जी को गांव में लोग इज्जत की नजरों से देखते थे, और रंजीत जानता था कि अगर कोई उसे इन कागजातों का मतलब समझा सकता है, तो वह सिर्फ मास्टर शंकर प्रसाद ही हैं।

गांव के किनारे एक छोटे से मकान में मास्टर जी रहते थे। रंजीत ने दरवाजा खटखटाया।

“अरे रंजीत!  कैसे आना हुआ? सब ठीक तो है?” मास्टर जी ने हैरानी से पूछा।

“मास्टर जी, मेरे पास कुछ कागज है, जो मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। क्या आप इन्हें पढ़कर मुझे बता सकते हैं?”

मास्टर जी ने रंजीत के हाथों से कागज लिए और गौर से पढ़ने लगे। रंजीत उनके चेहरे के हाव-भाव को पढ़ने की कोशिश कर रहा था, जो धीरे-धीरे गंभीर होते जा रहे थे। कुछ देर बाद शंकर प्रसाद ने गहरी सांस ली और कहा, "रंजीत, ये तो बहुत ही महत्वपूर्ण कागजात हैं। तुम्हारे पिताजी और तुम्हारी दादी को शायद पता नहीं, लेकिन यह जमीन तो मुगेंरी लाल के नाम पर है। इसका मतलब, जमीन के असली मालिक तुम लोग हो!"

रंजीत की आंखें बड़ी हो गई। "क्या! लेकिन बिक्रम ठाकुर हमेशा से कहता आया है कि यह जमीन उसकी है। उसने तो यह जमीन मेरे नाना से खरीदी थी।"

मास्टर जी ने उसे समझाया, "हो सकता है कि कोई मौखिक समझौता हुआ हो, या फिर शायद किसी ने इसे गलत तरीके से दबाने की कोशिश की हो, पर कागजों के हिसाब से जमीन तुम्हारे पिताजी के नाम ही है। ठाकुर साहब का दावा झूठा है। तुम लोग पूरे हक से अपनी जमीन पर खेती कर सकते हो लेकिन कोई भी फैसला लेने से पहले किसी वकील से बात जरूर कर लेना।"

रंजीत को विश्वास नहीं हो रहा था। वह जल्दी से कागजों को हाथ में लेकर फिर से पढ़ने की कोशिश करने लगा। ये वही जमीन थी, जिसके लिए उनकी मेहनत पर ठाकुर का अतिक्रमण था। उसने धन्यवाद कहते हुए मास्टर जी से विदा ली और दौड़ता हुआ घर की ओर चला गया।

घर पहुंचते ही उसने देखा की बाहर भीड़ जमा है, वह तेजी से घर की ओर भाग, अंदर जाते ही उसने देखा की सारा सामान बिखरा पड़ा है जैसे किसी ने उसके घर पर हमला किया हो। मुंगेरी लाल आँगन मे पड़े चौकी पर बैठ हुआ था, उसके बाल बिखरे हुए थे और कुर्ता भी फटा हुआ था। बाकी सब लोग ठीक थे। 

पूछने पर पता चला की उदय ठाकुर और उसके लोग आए थे, उन लोगों ने मुंगेरी लाल के साथ मारपीट की और धमकी देकर गया की अगर उन लोगों ने दोबारा उस जमीन पर पैर रखे तो उन्हे इस गांव से भगा दिया जाएगा। 

आँगन मे उसकी माँ, दादी और बहन रो रहे थे, गाँव की कुछ महिलाएं उन्हें सांत्वना दे रही थी। ऐसा दृश्य देखकर रंजीत का कलेजा फट गया। उसका खून उबाल मारने लगा लेकिन उसे मास्टर साहब की सलाह याद आ गई। 

“कोई भी फैसला लेने से पहले किसी वकील से बात जरूर कर लेना।”

रंजीत ने सभी लोगों को बाहर किया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।

“बेटा अब हम लोग क्या करेंगे? कहाँ जाएंगे? उस जमीन के ही भरोसे हम लोग जिंदा है अगर वो भी छिन् गया तो.। इतना कहकर मुंगेरी लाल आँगन के कुएं की की और दौड़ा, तभी रंजीत ने उसे पकड़ लिया?

“बाबा ये आप क्या करने जा रहे हैं?” तभी पीछे से उसकी बहन और माँ ने भी मुंगेरी लाल को पकड़ लिए।

मुंगेरी, “छोड़ दो मुझे, अब जिंदा रह कर करें भी क्या?”

रंजीत, “बाबा, कोई हमें हमारी जमीन से बेदखल नहीं कर सकता, वो जमीन हमारी है।”

यह सुनकर सब लोग चौंक गये। मुंगेरी लाल भी रंजीत को आशा से देखने लगा पर उसे लगा की यह उन्हे बहलाने की किया कहा गया है। 

रंजीत ने धीरे-धीरे उन्हें पूरी बात बताई कि कैसे कागजात में उनकी जमीन का मालिकाना हक मुगेंरी लाल के नाम पर ही था, और ठाकुर का दावा पूरी तरह गलत था। यह सुनते ही मुंगेरी लाल हक्का-बक्का रह गए।

“बेटा, क्या तू सच कह रहा है?” मुगेंरी ने रंजीत से पूछा।

“हां, पिताजी। मास्टर जी ने खुद कागज पढ़े हैं। जमीन हमारे ही नाम है, और अब ठाकुर साहब का इस पर कोई हक नहीं है।” रंजीत ने विश्वास से कहा।

दादी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “तो आखिरकार वही हुआ जो मैंने सोचा था। तेरे नाना ने शायद जमीन वापस करने का कोई मौखिक वादा किया हो, लेकिन कागजों पर तो तू ही मालिक है।”

मुंगेरी लाल ने सिर पकड़ लिया। इतने सालों से वे लोग बिना वजह आधी फसल ठाकुर को देते आ रहे थे। उनकी मेहनत पर किसी और का कब्जा था, और उन्हें इसका पता तक नहीं था।

रंजीत के मन में विद्रोह का ज्वाला फूट चुका था। अब वह किसी भी कीमत पर ठाकुर की ज्यादतियों को बर्दाश्त नहीं करेगा। उसने पिताजी से कहा, “अब समय आ गया है कि हम ठाकुर को उसके असली हक से वंचित करें। हम अब अपना हिस्सा खुद रखेंगे और उन्हें एक भी दाना नहीं देंगे।”

मुंगेरी लाल थोड़े डरे हुए थे। वे जानते थे कि ठाकुर के पास धन, बल, और गाँव में दबदबा था। लेकिन रंजीत का हौसला देख वे भी हिम्मत जुटाने लगे। रंजीत ने कहा, “पिताजी, आप डरो मत। हमारे पास कागजात हैं और कानूनी तौर पर हम ही मालिक हैं। अगर हमें संघर्ष करना भी पड़े, तो हम पीछे नहीं हटेंगे।”

रंजीत और मुंगेरी लाल  तुरंत पास के शहर जितपुर जाकर वकील से सलाह ली। वकील ने कागजात देखे और कहा, “आपकी जमीन आपके नाम पर है। अगर ठाकुर साहब कोई दावा करते हैं, तो वे गलत है। आप कोर्ट में जाकर उन्हें चुनौती दे सकते हैं।”

“लेकिन वकील साहब जमीन मेरे नाम पर कैसे है? यह तो मेरे ससुर की जमीन थी। हमलोग खुद दफ्तर गए थे जहां पर जमीन का लेनदेन हुआ था।” मुंगेरी लाल ने संदेहपूर्ण भाव से पूछा। 

वकील ने आगे कहा, “देखिए मुंगेरी लाल कागज पर जमीन तो तुम्हारे नाम पर ही है, लेकिन साथ में एक और कागज है जो कहता है की जमीन की उपज का आधा हिस्सा तुम रखोगे और आधा हिस्सा ठाकुर साहब रखेंगे। मुझे तो लगता है कि यह जमीन एक बेनामी संपत्ति है।”

“बेनामी संपत्ति? ये क्या होता है?” रंजीत ने चौंकते हुए पूछा। 

वकील ने आगे समझाया, “देखो क्या होता है की जिसके पास जितनी संपत्ति होती है, उसे सरकार को उतना ज्यादा टैक्स देना पड़ता है, लेकिन अमीर लोग अपने नाम पर ज्यादा संपत्ति नही रखते हैं, तुम्हारे केस मे जमीन ठाकुर साहब ने ही खरीदी है लेकिन मुंगेरी लाल के नाम पर, इस तरह कानून की नजरों जमीन का मालिक तुम्हारे पिता है और फायदा ठाकुर साहब उठा रहे हैं जो की कानूनन गलत है। पकड़े जाने पर 7 साल की सजा हो सकती है और जुर्माना भी देना पड़ सकता है।”

“अनाज का बँटवारा महज एक समझौता था जो तुम्हारे दादा बाबू लाल और ठाकुर साहब के बीच हुआ था जिसे तुमलोग आज तक निभा रहे थे।”

यह सुनते ही रंजीत और मुंगेरी लाल ने तुरंत ठाकुर के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया। वकील ने उसका केस फाइल कर दिया, कुछ दिनों में कोर्ट में सुनवाई की तारीख तय हो गई।

रंजीत ने गाँव के कुछ और लोगों को भी इस सच्चाई से अवगत कराया। धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी कि ठाकुर साहब का दावा झूठा था और जमीन पर असल हकदार मुगेंरी लाल ही थे। गाँव के लोग, जो पहले ठाकुर के डर से चुप थे, अब रंजीत के साथ खड़े होने लगे।

कुछ हफ्तों बाद, कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। बिक्रम ठाकुर की तरफ से उनके वकील ने दावा किया कि जमीन उनका है, लेकिन उनके पास कोई ठोस कागजात नहीं थे। उनके दावे महज मौखिक समझौतों पर आधारित थे, जबकि रंजीत और मुंगेरी लाल के पास जमीन के असली कागजात थे।

कोर्ट में दोनों पक्षों को सुनने के बाद, न्यायाधीश ने फैसला सुनाया, “जमीन का असली मालिक मुगेंरी लाल है। ठाकुर साहब के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है कि वे जमीन पर दावा कर सकें। उदय ठाकुर ने जो फसल पर कब्जा किया है, कोर्ट आदेश देता है की उसे मुंगेरी लाल को वापस किया जाए और साथ ही कोर्ट उदय ठाकुर को चेतावनी देती है की आगे से उन्हे जमीन को लेकर परेशान ना करें।”

यह फैसला आते ही रंजीत के परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। इतने सालों के अन्याय के बाद, आखिरकार उन्हें अपनी जमीन पर पूरा हक मिल गया था। ठाकुर साहब और उनके आदमी कोर्ट में ही निराश और हताश होकर खड़े थे।


एक साल बाद

फसल की कटाई का समय आ गया था, इस बार फसल काफी अच्छी हुई थी। रंजीत के चेहरे पर आत्मविश्वास और संतोष की झलक थी। वह जानता था कि उसकी मेहनत अब पूरी तरह से उसकी होगी। गांव के लोगों ने भी उसकी इस जीत को देखा और उसकी बहादुरी की सराहना की।

रंजीत अब अपनी जमीन पर खूब मन लगाकर मेहनत करता। उसका सपना था कि वह खेती में नए-नए तरीके अपनाकर अपनी जमीन को और उपजाऊ बनाए। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई, और उसकी खेती से भरपूर फसल होने लगी।

गाँव के बाकी किसान भी अब रंजीत से प्रेरणा लेकर अपने हक के लिए खड़े होने लगे। बिक्रम ठाकुर का गाँव पर दबदबा कम हो गया था, और लोग उसे एक अब अन्यायी के रूप में देखने लगे थे।

रंजीत की कहानी सिर्फ एक किसान की जीत नहीं थी, यह उस न्याय की जीत थी जो सालों से दबा हुआ था। उसने यह साबित कर दिया कि सच्चाई और मेहनत के सामने अन्याय और अत्याचार टिक नहीं सकता।

मुंगेरी लाल का परिवार अब गरीबी से बाहर निकल चुका था, रंजीत भी खुश रहने लगा, वह अक्सर अपने खेतों में काम करते हुए जोर-जोर से गाता रहता..

“मेरे देश की धरती… सोना उगले, उगले हीरे मोती… मेरे देश की धरती…”

[बेनामी संपत्ति पर पहली बार सन् 1988 में कानून बनाई गई थी। वर्ष 2016 में भारत सरकार ने बेनामी संपत्ति के खिलाफ और सख्त नियम बनाए, उसके बाद इस कानून को संसद के दोनों सदनों में पारित कर उसे पूरे भारत में सख्ती से लागू किया।]

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