प्यार की अनकही दास्तान (Love Story In Hindi Kahani)

ganga nadi, ek naw par do log love story in hindi kahani

वाराणसी का एक छोटा-सा मोहल्ला, जहाँ गंगा नदी किनारे सूरज की किरणें जब सुबह के समय पानी पर पड़तीं, तो ऐसा लगता मानो नदी पर सोने की चादर बिछ गई हो। वहीँ, दूसरी ओर, गलियों में लोगों की हलचलें और चाय की दुकानों पर लगने वाली भीड़ दिन की शुरुआत की आहट देती थी। इसी मोहल्ले में रहती थी स्नेहा, जो अपने घर की सबसे छोटी बेटी थी। स्नेहा की आंखों में हजारों सपने थे, और दिल में एक अनकहा सा प्यार।

स्नेहा की सुबहें अक्सर घर की छत पर होती थीं, जहां से वह गंगा नदी की ओर निहारती, मानो कुछ ढूंढ रही हो। वह बेहद साधारण सी लड़की थी, लेकिन उसकी मुस्कान में एक अनोखी कशिश थी। मोहल्ले में उसकी हंसी की खनक बहुत पसंद की जाती थी। स्नेहा की ज़िन्दगी किताबों और परिवार के इर्द-गिर्द घूमती थी, परंतु उसके दिल के किसी कोने में एक ऐसे साथी की चाहत थी जो उसकी भावनाओं को समझ सके, उसके सपनों को साथ बांट सके।

एक दिन, जब वह अपने कॉलेज के लिए निकल रही थी, तभी उसकी नज़र सामने से आ रहे एक लड़के पर पड़ी। लड़का कंधे पर बैग लटकाए हुए था, और उसकी आंखों में एक अजीब-सा आकर्षण था। वह लड़का, रोहन, हाल ही में इस मोहल्ले में आया था। उसकी चाल में आत्मविश्वास और चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी, जो स्नेहा को अचानक रोक गई।

स्नेहा ने रोहन को पहली बार देखा था, लेकिन वह कुछ खास था, जो उसे महसूस हो रहा था। वह दोनों नज़रें मिलते ही थोड़ी देर के लिए रुक गए, लेकिन फिर वह अपना रास्ता चलते गए। स्नेहा ने कभी सोचा नहीं था कि उसकी ज़िन्दगी में यह छोटी-सी मुलाकात इतने गहरे रंग भर देगी।

वक़्त बीतता गया, और रोहन और स्नेहा की मुलाकातें मोहल्ले की गलियों में होते हुए कॉलेज तक पहुँचने लगीं। कभी नज़रें मिलतीं, कभी मुस्कानें बांटतीं। धीरे-धीरे स्नेहा ने महसूस किया कि वह रोहन के बारे में सोचने लगी है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है, पर दिल ने एक अलग ही रास्ता पकड़ लिया था।

रोहन भी स्नेहा की मासूमियत से बहुत प्रभावित हुआ था। उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी, जो उसे बार-बार स्नेहा की ओर खींच लाती थी। दोनों के बीच कोई सीधी बातचीत नहीं हुई थी, लेकिन उनकी आंखों ने वो सब कह दिया था, जो उनके होंठों से कह पाना शायद मुश्किल था।

एक दिन, जब स्नेहा अपनी सहेलियों के साथ गंगा किनारे टहल रही थी, तभी अचानक रोहन वहां आ गया। उसने स्नेहा की ओर देखा और हल्के से मुस्कुरा दिया। स्नेहा का दिल तेजी से धड़कने लगा, मानो उसकी सारी भावनाएँ उसके चेहरे पर झलक रही हों।

"कैसी हो?" रोहन ने हिम्मत जुटाकर पूछा।

स्नेहा थोड़ी हिचकिचाई, लेकिन फिर मुस्कराते हुए बोली, "मैं ठीक हूँ। तुम कैसे हो?"

"मैं भी अच्छा हूँ।" रोहन की आवाज़ में एक सुकून था, जो स्नेहा को महसूस हुआ।

इसके बाद उनकी बातें धीरे-धीरे बढ़ने लगीं। वह दोनों कई बार कॉलेज के बाद गंगा किनारे बैठकर बातें करते, जहाँ वह अपने सपनों, अपने विचारों और जीवन के अनुभवों को साझा करते। स्नेहा ने रोहन के साथ अपनी ज़िन्दगी के सबसे प्यारे पल बिताए थे। उसे ऐसा लगता था कि वह रोहन के बिना अपनी ज़िन्दगी की कल्पना नहीं कर सकती।

समय के साथ, दोनों के बीच एक गहरी दोस्ती हो गई थी। दोनों का साथ मानो ज़िन्दगी के हर पहलू को खूबसूरत बना देता था। स्नेहा और रोहन की मुलाकातें अब रोज़मर्रा का हिस्सा बन गई थीं। गंगा किनारे बिताए गए वो पल, बातें, हंसी और कभी-कभी चुप्पी भी, उनके दिलों के बीच की दूरी को मिटा रही थी।

रोहन को स्नेहा की मासूमियत, उसकी बातें और उसका हर एहसास बहुत अच्छा लगता था। उसे एहसास हो चुका था कि वह स्नेहा से प्यार करने लगा है। परंतु वह यह नहीं समझ पा रहा था कि उसे यह बात स्नेहा को कैसे बताए।

एक दिन, रोहन ने हिम्मत जुटाकर स्नेहा से कहा, "स्नेहा, मुझे तुमसे एक बात कहनी है।"

स्नेहा का दिल धड़कने लगा। उसे अंदाज़ा तो था, पर वह सुनना चाहती थी, अपने दिल की बात रोहन के होंठों से।

"क्या बात है, रोहन?" स्नेहा ने हल्के से मुस्कराते हुए पूछा।

रोहन ने गहरी सांस ली और बोला, "मुझे नहीं पता ये कैसे कहना है, पर... मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। जब भी तुम्हारे साथ होता हूँ, मुझे लगता है कि दुनिया बहुत खूबसूरत है। क्या तुम भी मेरे साथ अपना जीवन बिताना चाहोगी?"

स्नेहा की आंखों में खुशी के आंसू थे। वह भी रोहन से प्यार करती थी, लेकिन उसने कभी अपने दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं की थी। उसने रोहन की ओर देखा और धीरे से कहा, "हां, रोहन, मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूं।"

दोनों का प्यार अब खुलकर सामने आ चुका था, लेकिन जैसे ही वे अपनी इस नई दुनिया में खुश थे, वैसे ही ज़िन्दगी ने उन्हें एक और चुनौती दी। रोहन के परिवार को अचानक अपने गांव लौटना पड़ा। उसके पिता की तबीयत खराब हो गई थी, और उन्हें उनकी देखभाल के लिए गांव जाना था। यह खबर स्नेहा और रोहन दोनों के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी।

रोहन को अपने परिवार की जिम्मेदारियों के चलते वाराणसी छोड़कर जाना पड़ा। जाते वक्त उसने स्नेहा से वादा किया कि वह जल्द ही लौटेगा। स्नेहा ने भी रोहन का हाथ थामकर कहा, "मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी, चाहे जितना भी समय लगे।"

रोहन के चले जाने के बाद, स्नेहा का जीवन बदल गया। हर दिन वह उसी छत पर बैठकर गंगा नदी को देखती, जहाँ से वह और रोहन ने अपने सपनों को साझा किया था। उसे रोहन की हर बात, हर हंसी और उसकी मौजूदगी की कमी महसूस होती थी। पर उसने अपने दिल को तसल्ली दी कि रोहन वापस आएगा।

वहीं दूसरी ओर, रोहन भी अपने गांव में स्नेहा को याद करता था। वह रोज़ उसे पत्र लिखता, जिसमें अपनी भावनाएं बयां करता। उन पत्रों में उसकी यादें, उसके सपने, और उनका साथ लिखा होता। स्नेहा को भी वह पत्र मिलते और वह उन पन्नों पर रोहन के शब्दों में अपने दिल का अक्स देखती।

कुछ महीने बीत गए। स्नेहा ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए पढ़ाई पर ध्यान देना शुरू किया, लेकिन उसका दिल हमेशा रोहन के लिए धड़कता रहा। एक दिन, अचानक दरवाजे की घंटी बजी। स्नेहा ने दरवाजा खोला, और सामने रोहन खड़ा था। उसकी आंखों में वही चमक, वही मुस्कान, जिसे देख स्नेहा ने उसे पहली बार पहचाना था।

"तुम वापस आ गए!" स्नेहा की आवाज़ में खुशी का आलम था।

"हाँ, मैं वापस आ गया, और इस बार हमेशा के लिए।" रोहन ने स्नेहा का हाथ थामते हुए कहा। "अब मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।"

स्नेहा की आंखों में आंसू थे, लेकिन ये आंसू खुशी के थे। उसने रोहन को गले से लगा लिया। दोनों ने मिलकर गंगा किनारे फिर से वही पल बिताए, जिनकी यादों में वह इतने समय से जी रहे थे।

रोहन और स्नेहा का प्यार समय की कसौटी पर खरा उतरा था। उन्होंने एक-दूसरे का साथ हर मुश्किल में निभाया और अंततः एक दूसरे के लिए अपना जीवन समर्पित किया। दोनों ने शादी कर ली और फिर वही गंगा किनारे, अपने प्यारे शहर वाराणसी में एक साथ अपनी ज़िन्दगी की नई शुरुआत की।

उनका प्यार सच्चा था, बिना किसी शर्त के, और यही प्यार उन्हें ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर साथ लेकर चला।

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