भानगढ़ किला: एक डरावनी कहानी (Bhangarh Ki Kahani)

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राजस्थान की धूल भरी सड़कों के उस पार, अरावली पर्वतमाला के बीचो-बीच स्थित है एक प्राचीन निर्माण - भानगढ़ का किला। यह किला सदियों से न केवल अपने स्थापत्य कला के लिए, बल्कि अपने भयावह और रहस्यमयी इतिहास के लिए भी प्रसिद्ध है। भानगढ़ के किले के बारे में कई कहानियाँ प्रचलित हैं, जिनमें से अधिकांश भूत-प्रेत और शाप से जुड़ी हुई हैं। लोग मानते हैं कि किले के भीतर कोई अदृश्य शक्ति है जो सूरज ढलते ही जाग जाती है। ये कहानियाँ इतने भयावह हैं कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने किले के प्रवेश द्वार पर एक चेतावनी लिखवा रखी है: "सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले किले में प्रवेश वर्जित है।"

लेकिन सभी लोग इस चेतावनी पर विश्वास नहीं करते। अरुण, एक युवा इतिहासकार, भी उनमें से एक था। उसके लिए ये कहानियाँ सिर्फ़ लोककथाएँ थीं, जो लोगों की कल्पना की उपज थीं। उसके भीतर के शोधकर्ता को ये जानने की तीव्र उत्सुकता थी कि आखिर इस किले की सच्चाई क्या है। क्या सचमुच वहाँ कुछ अलौकिक ताकतें हैं, या ये सिर्फ अंधविश्वास है? इसी सवाल का जवाब ढूंढने के लिए उसने अपने कुछ साथियों के साथ भानगढ़ किले की यात्रा की योजना बनाई।

अरुण और उसकी टीम के सदस्य: नीरज, माया, और सोनल, सभी उच्च शिक्षित और प्रगतिशील विचारधारा वाले युवा थे। उनके पास आधुनिक तकनीक और उपकरण थे, जो किसी भी संभावित रहस्य को उजागर करने में मदद कर सकते थे। यात्रा के दिन, सभी लोग उत्साहित थे। नीरज और माया, जो खुद भी इतिहासकार थे, अरुण के साथ सहमत थे कि भानगढ़ के किले के पीछे छुपे डर केवल कहानियाँ हैं। सोनल, जो कि एक वीडियो पत्रकार थी, इस यात्रा का दस्तावेज़ बनाने के लिए साथ आई थी।

टीम ने किले के पास ही एक छोटा सा गेस्टहाउस किराए पर लिया, जहाँ से किले का विशाल ढाँचा साफ दिखता था। किला, जो दिन में प्राचीन स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना लगता था, शाम होते-होते एक डरावने खंडहर में बदल जाता था। सूर्यास्त होते ही वहाँ की हवा में अजीब सी ठंडक और भारीपन महसूस होने लगा। जब अरुण और उसकी टीम भानगढ़ गाँव पहुँची, तो वहाँ का माहौल अजीब था। एक ओर, गाँव की खुशहाल ज़िंदगी चल रही थी, लेकिन दूसरी ओर, किले के आसपास की चुप्पी और रहस्यमयता का एक काला साया था। जैसे ही उन्होंने अपने वाहन से उतरकर गाँव की सड़क पर कदम रखा, उनकी नज़रें चारों ओर के साधारण घरों, चाय की दुकानों, और छोटे-छोटे खेतों पर पड़ीं। गाँव के लोग अपने दैनिक कामों में व्यस्त थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने अरुण और उसकी टीम को देखा, उनकी नजरों में एक अलग तरह की चिंता और डर दिखाई दिया।

गाँव वालों ने उन्हें देखते ही फुसफुसाते हुए एक-दूसरे से बातें करना शुरू कर दिया। कुछ लोग तो अपनी बातें खत्म करने से पहले ही वहाँ से भाग खड़े हुए। एक बुजुर्ग, जिनके चेहरे पर समय की अनेक लकीरें थीं और आंखों में अनुभव की गहराई, ने उन्हें रोक लिया। उन्होंने अपनी आवाज़ को धीमा रखते हुए कहा, "तुम लोग सचमुच भानगढ़ किले के पास जाने की सोच रहे हो?"

अरुण ने उस बुजुर्ग की गंभीरता को समझा, लेकिन वह अपने मिशन में इतना डूबा हुआ था कि उसने थोड़ी मजाकिया लहजे में कहा, "जी हाँ, दादा। हम बस कुछ इतिहास के बारे में जानने आए हैं।" उसकी मुस्कान से ऐसा लगता था जैसे वह इस बात को हल्के में ले रहा हो।

बुजुर्ग ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "यह किला अपनी जगह है, लेकिन रात को वहाँ जाना मौत को न्यौता देने के बराबर है। पिछले कई वर्षों में जो भी वहाँ गया, वह कभी वापस नहीं लौटा। इस किले में अनजानी शक्तियाँ हैं।" उनकी आवाज़ में डर का एक हल्का सा झरना था, जो सुनने वालों को विचलित कर देता था।

अरुण ने उनकी बात को हल्के में लिया और मुस्कुराते हुए कहा, "हम इतिहास की सच्चाई जानने आए हैं, किसी डर की खोज में नहीं।" लेकिन उसकी बातों में एक हंसी थी, जो उसे खुद भी यकीन दिला रही थी कि डर नाम की कोई चीज़ नहीं होती।

गाँव वाले उनकी बातें सुनकर एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। कुछ ने सिर हिलाया, जबकि कुछ ने मुँह चिढ़ाते हुए अपनी आँखें फेर लीं। बुजुर्ग ने कहा, "तुम लोग इतिहास के शोध के लिए आए हो, लेकिन तुम्हें यह समझना होगा कि इतिहास केवल किताबों में नहीं होता। कभी-कभी वह जिंदा हो जाता है।"

अरुण ने सोचा कि यह बस एक और लोककथा है, लेकिन फिर भी उसने आदर से बुजुर्ग की बात सुनी। उसने अपनी टीम को इशारा किया कि वे गाँव वालों से और भी बातें करें। नीरज, जो खुद एक इतिहासकार था, ने बुजुर्ग से सवाल किया, "क्या आपको कोई विशेष घटना याद है, जो इस किले से जुड़ी हो?"

बुजुर्ग ने कुछ पल चुप रहकर अपने भीतर के डर को समेटा और फिर धीरे-धीरे बोला, "एक बार, एक युवा जोड़ा किले में घूमने गया था। वे शाम के समय गए थे और किसी ने उन्हें चेतावनी नहीं दी। रात होते ही, उनकी चीखें सुनाई दीं। अगले दिन, गाँव वालों ने किले में जाकर उनकी खोज की, लेकिन केवल उनके कपड़े मिले।"

सभी ने सहमति में सिर हिलाया, और माया, जो पूरी बात सुन रही थी, ने कहा, "आपका कहना है कि वहाँ की आत्माएँ उन्हें पकड़ ले गईं?"

"कुछ ऐसा ही," बुजुर्ग ने सिर झुकाते हुए कहा। "किले की दीवारों में कितनी आत्माएँ कैद हैं, यह कोई नहीं जानता। इसलिए, अगर तुम वहाँ जाने का फैसला कर रहे हो, तो तुम्हें अपनी हिम्मत को मजबूत करना होगा।"

अरुण ने थोड़ी देर के लिए चुप रहकर बुजुर्ग की बातों पर विचार किया। उसने महसूस किया कि गाँव वालों का डर कहीं न कहीं सच हो सकता है। लेकिन उसके वैज्ञानिक मन ने यह बात स्वीकार करने से इनकार कर दिया। वह उन कहानियों को सिर्फ अंधविश्वास मानता था। उसने अपने आप से कहा, "मैं डर से भाग नहीं सकता। मुझे सच का सामना करना होगा।"

"हम जोखिम लेने को तैयार हैं," उसने अंततः कहा। "हम यहाँ से भागने नहीं आए हैं। हमारी यात्रा केवल जानने के लिए है।" उसकी आवाज में एक निश्चितता थी, जो उसे खुद को भी आश्वस्त कर रही थी।

गाँव वाले उसकी बातें सुनकर थोड़ी सी हंसी में लोटपोट हो गए, लेकिन बुजुर्ग ने केवल सिर हिलाया। "अगर तुम लोग जानने पर अड़े हो, तो मैं सिर्फ यही कह सकता हूँ - जो भी तुम खोजोगे, वह तुम्हारी जिंदगी का सबसे बड़ा रहस्य होगा। लेकिन ध्यान रखना, अंधेरे में सच कभी आसान नहीं होता।"

इस बीच, गाँव में एक युवती ने अपनी माँ को बुला लिया। वह युवती अपनी माँ से कह रही थी, "देखो, ये लोग कितने बेखौफ हैं। क्या इन्हें नहीं पता कि किले में क्या होता है?" उसकी माँ ने सिर झुकाकर कहा, "हाँ, लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि कुछ लोग अपने साहस से ही अपने भाग्य को लिखते हैं।"

अरुण और उसकी टीम ने अब तय कर लिया था कि वे किले की ओर जाएंगे, लेकिन गाँव वालों की चेतावनी उनके मन में घर कर गई थी। जब वे गाँव की दुकान से कुछ आवश्यक सामान खरीद रहे थे, तो दुकानदार ने भी उन्हें समझाया। "आप लोग क्या सोचते हैं? हम यहाँ से दूर रहने का प्रयास करते हैं।"

अरुण ने कहा, "हम केवल रात बिताने के लिए जा रहे हैं। हमें केवल इतिहास को समझना है।" लेकिन दुकानदार ने कहा, "जितना संभव हो, वहाँ से जल्दी लौट आना। रात्रि की घड़ी बहुत अंधेरी होती है।"

इस तरह की बातें सुनकर टीम ने खुद को और अधिक संकल्पित किया। उन्होंने एक-दूसरे को आश्वस्त किया कि वे एक-दूसरे का साथ देंगे। भले ही डर उनके मन में था, लेकिन साहस उनके साथ था।

जब वे गाँव से चलने लगे, तो अरुण ने देखा कि गाँव वाले उन्हें चुपचाप देख रहे थे। एक माँ अपने बच्चे को लेकर उस ओर देख रही थी, जैसे वह अपने बच्चे को यह समझा रही हो कि उन साहसी लोगों को छोड़ दो।

"हम वहाँ जाएंगे," अरुण ने अपनी टीम के सभी सदस्यों से कहा। "हमें वहाँ की सच्चाई का पता लगाना है, चाहे कुछ भी हो।" उसकी आवाज़ में एक गंभीरता थी, जो सबको प्रेरित कर रही थी।

"हाँ, हम साथ हैं," नीरज ने कहा। "अगर हमें वहाँ कुछ भी अजीब महसूस होता है, तो हम तुरंत लौटेंगे। लेकिन हमें यह जरूर जानना चाहिए कि इस किले में क्या है।"

जैसे ही उन्होंने गाँव को पीछे छोड़ा, अरुण को यकीन था कि उनका साहस और एकजुटता उन्हें अंधेरे में भी मार्गदर्शन करेगा। भानगढ़ किले की ओर बढ़ते हुए, सभी के दिलों में एक ही सवाल था - क्या वे इस रहस्यमय यात्रा से लौटेंगे?

 उसकी टीम ने अपने शोध और वीडियो रिकॉर्डिंग के लिए रात में ही किले के अंदर जाने का निर्णय लिया।

रात होते ही टीम ने अपने उपकरण तैयार किए। अरुण ने सभी को कहा, "हम यहाँ एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आए हैं। अगर कुछ भी असामान्य होता है, तो हमें उसे रिकॉर्ड करना है, न कि डरना।" सभी सहमत हुए और एक टॉर्च, कैमरे और कुछ सेंसरों के साथ वे किले की ओर बढ़े।

किले का प्रवेश द्वार रात के अंधकार में और भी रहस्यमय लग रहा था। चारों ओर सन्नाटा था, केवल पेड़ों की पत्तियों की सरसराहट सुनाई दे रही थी। जब वे किले के अंदर दाखिल हुए, तो सोनल ने अपना कैमरा चालू कर दिया और वीडियो बनाना शुरू किया।

किले के अंदर का माहौल अजीब था। पुरानी दीवारें, जो दिन में साधारण लगती थीं, अब किसी भूतिया फिल्म का हिस्सा लग रही थीं। नीरज ने कहा, "किला बहुत पुराना है, और इसकी हालत खस्ता हो चुकी है। यहाँ किसी भी अजीब आवाज़ का आना सामान्य है, दीवारों में जगह-जगह दरारें हैं।" लेकिन माया ने धीमे स्वर में कहा, "फिर भी, कुछ तो अजीब है यहाँ।"

उनकी टीम किले के भीतर के हिस्सों का निरीक्षण करने लगी। जैसे ही वे गहरे अंदर पहुँचे, अजीब घटनाएँ शुरू हो गईं। सोनल ने अपने कैमरे में कुछ अजीब सी छायाएँ रिकॉर्ड कीं, जो उनके पीछे से गुज़र रही थीं। उसने तुरंत अरुण को दिखाया, लेकिन उसने इसे केवल तकनीकी गड़बड़ी कहकर नज़रअंदाज़ कर दिया।

आधे घंटे के भीतर ही टीम के सभी सदस्य असामान्य घटनाओं का अनुभव करने लगे। नीरज ने देखा कि उसकी टॉर्च अपने आप बंद हो जाती थी और फिर से चालू हो जाती थी। माया ने एक कमरे के कोने में किसी का साया देखा, लेकिन जब उसने नज़दीक जाकर देखा, तो वहाँ कुछ नहीं था। सोनल ने अपने कैमरे में अजीब आवाज़ें रिकॉर्ड कीं - जैसे कोई बहुत धीमी आवाज़ में मंत्र पढ़ रहा हो।

अरुण ने इन सब चीज़ों को अंधविश्वास मानकर नज़रअंदाज़ किया, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने उसे भी विचलित कर दिया। वह किले के एक पुराने कक्ष में खड़ा था, जहाँ उसे अचानक अपने चारों ओर ठंडक महसूस होने लगी। एकाएक, उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसके कंधे पर हाथ रख रहा हो। उसने पलट कर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, लेकिन उसने अपने डर को खुद पर हावी नहीं होने दिया।

तभी, किले के अंदर एक जोरदार आवाज़ आई, जैसे किसी भारी दरवाज़े के बंद होने की। सभी दौड़ते हुए आवाज़ की दिशा में पहुँचे, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। माया ने हताशा में कहा, "यहाँ कुछ न कुछ गलत है। हमें यहाँ से निकलना चाहिए।" लेकिन अरुण ने उसे समझाते हुए कहा, "ये सब महज संयोग हो सकते हैं। हमें अभी और समय चाहिए।"

थोड़ी देर बाद, वे एक बड़े हॉल में पहुँचे, जो किले के राजा माधो सिंह की बैठक हुआ करती थी। वहाँ पहुँचते ही उन्हें एक अजीब सी गंध महसूस हुई। दीवारों पर प्राचीन चित्र थे, जो राजा, रानियों और दरबारियों को दर्शा रहे थे। अचानक, माया ने एक पुरानी पांडुलिपि देखी, जो फर्श के एक कोने में धूल से ढकी हुई थी। उसने उसे उठाया और पढ़ने की कोशिश की।

उस पांडुलिपि में एक शाप का वर्णन था। कहते हैं कि भानगढ़ की रानी रत्नावती असाधारण सौंदर्य की धनी थीं। एक दिन, एक तांत्रिक ने रानी पर मोहित होकर उसे अपने वश में करने के लिए काला जादू किया। लेकिन रानी, जो खुद भी विद्वान थी, तांत्रिक की चाल समझ गई और उसने उस पर पलटवार किया। तांत्रिक की मृत्यु के पहले उसने पूरे भानगढ़ पर एक शाप दे दिया - "इस किले में रहने वाली हर आत्मा कभी शांति नहीं पाएगी, और यहाँ जो भी प्रवेश करेगा, वह इस शाप का शिकार होगा।"

अरुण ने यह पढ़ते ही माया के हाथ से पांडुलिपि ली और कहा, "ये सिर्फ एक पुरानी कहानी है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।" लेकिन नीरज ने चुपचाप कहा, "हो सकता है, लेकिन जिस तरह की चीजें हम यहाँ अनुभव कर रहे हैं, वे सामान्य नहीं हैं।"

टीम का मनोबल गिरता जा रहा था, और डर ने सबके चेहरों पर अपनी छाया डाल दी थी। तभी किले के अंदर अचानक से अजीब सी चीखों की आवाज़ें आने लगीं। ये चीखें इतनी डरावनी थीं कि सभी सदस्यों के रोंगटे खड़े हो गए। सोनल ने कहा, "हमें अब यहाँ से बाहर निकलना चाहिए। यह जगह सुरक्षित नहीं है।"

अरुण भी अब महसूस कर रहा था कि कुछ गलत हो रहा है, लेकिन वह अपनी जिद्द के कारण वहाँ से जाने को तैयार नहीं था। "हम आए हैं, तो इस किले का रहस्य सुलझा कर ही जाएंगे," उसने दृढ़ता से कहा। तभी अचानक उनके चारों ओर की लाइट्स बंद हो गईं, और किले में पूरी तरह अंधेरा छा गया। चारों ओर घना सन्नाटा था, और सिर्फ़ उनके दिल की धड़कनें सुनाई दे रही थीं।

अंधेरे में, उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे उनके आसपास कोई चल रहा है। नीरज ने अचानक जोर से चिल्लाया, "मेरे पीछे कोई है!" सभी उसकी आवाज़ सुनकर दौड़े, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। नीरज घबराया हुआ था और उसकी आँखों में डर साफ झलक रहा था। माया ने उसे शांत किया, लेकिन अब हर किसी को महसूस हो रहा था कि जो भी हो रहा है, वह सिर्फ कल्पना नहीं थी।

अरुण ने अपनी घड़ी की ओर देखा, रात के तीन बज रहे थे। वह जानता था कि सुबह होने में कुछ ही घंटे बाकी हैं, लेकिन उन घंटों को बिताना आसान नहीं था। तभी अचानक सोनल ने देखा कि उसकी रिकॉर्डिंग में एक अस्पष्ट छवि दिखाई दे रही थी - एक औरत की, जो पुराने राजसी वस्त्रों में लिपटी हुई थी। वह धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ रही थी। सोनल ने चीखते हुए कैमरा नीचे गिरा दिया, और सभी ने देखा कि वह छवि धीरे-धीरे गायब हो गई।

अब अरुण भी भयभीत हो चुका था। उसे यकीन हो चुका था कि इस किले में कुछ अलौकिक ताकतें थीं, जिन्हें वह नज़रअंदाज़ कर रहा था।

सभी सदस्यों ने तुरंत किले से बाहर निकलने का निर्णय लिया। वे दौड़ते हुए बाहर की ओर भागे, लेकिन जैसे ही वे मुख्य द्वार तक पहुँचे, दरवाजा बंद हो चुका था। उनकी साँसे तेज हो गईं, और सभी ने मिलकर दरवाजा खोलने की कोशिश की, लेकिन वह टस से मस नहीं हो रहा था।

नीरज ने कहा, "हम फंस गए हैं। अब हमें यहीं रुकना होगा।" माया ने घबराहट में कहा, "यह किला हमें यहाँ से जाने नहीं देगा।"

अरुण ने सभी को शांत किया और कहा, "हमें एक साथ रहना होगा। हमें सुबह तक इंतजार करना होगा।" उन्होंने किले के एक कोने में छिपकर रात बिताने का निर्णय लिया। पूरी रात उन्होंने अजीब-अजीब आवाज़ें सुनीं, और ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई उनके आसपास घूम रहा हो।

सुबह होते ही सूरज की किरणों ने किले के अंधेरे को खत्म किया। जैसे ही रोशनी फैली, दरवाजा अपने आप खुल गया। टीम के सभी सदस्य जल्दी से किले से बाहर निकल आए। वे बुरी तरह से डरे हुए थे, लेकिन साथ ही खुश भी थे कि वे जीवित बाहर आ सके।

किले से बाहर निकलते ही उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, और भानगढ़ का किला अभी भी उसी रहस्यमयी और भयावह रूप में खड़ा था। अरुण, जो खुद को हमेशा तर्कशील और वैज्ञानिक सोच वाला मानता था, अब जान चुका था कि दुनिया में ऐसी चीजें भी होती हैं, जिन्हें हम हमेशा विज्ञान से नहीं समझ सकते।

उसने फैसला किया कि वह इस किले के रहस्य को सुलझाने की कोशिश तो जरूर करेगा, लेकिन अब वह इसे एक नई दृष्टि से देखेगा - जहाँ तर्क और अंधविश्वास के बीच का अंतर धुंधला हो चुका था।

भानगढ़ का किला अब भी उसी तरह खड़ा है, अपने अंदर छिपाए कई राज़ और रहस्य, जो किसी भी बहादुर को चुनौती देते हैं, जो उसकी सच्चाई जानने की कोशिश करता है। लेकिन अब अरुण भी जानता था कि कुछ सच्चाइयाँ शायद सुलझाने के लिए नहीं होती, बल्कि सिर्फ़ अनुभव करने के लिए होती हैं।

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