सपनों का पीछा (Ek Garib Ki Kahani)

ek garib ki kahani me ek budha aadmi jhopdi ke bahar khada hai

रात का समय था। एक छोटा सा गाँव, जहाँ झोंपड़ियाँ एक कतार में खड़ी थीं। उन झोंपड़ियों में से एक में चेतन, एक गरीब आदमी, थका-हारा लेटा था। आसमान में तारे चमक रहे थे, और उन तारों को देखते-देखते चेतन के मन में एक ही ख्याल आता—“क्या कभी मेरा सपना पूरा होगा?”

चेतन गरीब था, मगर उसके सपने बहुत बड़े थे। हर रात उसे तरह-तरह के सपने आते—कभी वो एक बड़ा आदमी बन जाता, कभी उसका खुद का बड़ा सा घर होता, कभी उसके पास दौलत-शौहरत सब कुछ होता। मगर जैसे ही सुबह होती, हकीकत उसे वापस जमीन पर ला पटकती। वो दिनभर मेहनत करता, खेतों में मजदूरी करता, ताकि दिन के आखिर में दो वक्त की रोटी जुटा सके।

लेकिन चेतन का दिल कभी हार मानने को तैयार नहीं होता था। "एक दिन मेरा भी समय आएगा," वो खुद से कहता।

गाँव में हर कोई उसे एक मज़ाक की तरह देखता था। लोग कहते, "चेतन, तेरे सपने कभी सच नहीं होंगे। तू गरीब है, और गरीब आदमी के सपने कभी पूरे नहीं होते।"

मगर चेतन के दिल में कहीं न कहीं एक उम्मीद की किरण थी। हर रोज़ जब वो खेतों में काम करने जाता, तो सोचता, "कभी न कभी, मुझे कोई ऐसा रास्ता ज़रूर मिलेगा जिससे मैं अपने सपनों को हकीकत बना सकूँ।"

एक दिन, जब चेतन अपनी झोंपड़ी में बैठा बासी रोटी खा रहा था, अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने दरवाजा खोला, तो देखा कि एक बूढ़ा आदमी बाहर खड़ा था। उसकी दाढ़ी सफेद थी, आँखों में चमक थी, और कपड़े पुराने लेकिन साफ थे।

बूढ़े ने चेतन की ओर देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, मैं बहुत दूर से आया हूँ। मुझे भूख लगी है। क्या मुझे कुछ खाने को मिलेगा?"

चेतन ने तुरंत अपनी थाली बूढ़े की तरफ बढ़ाई और कहा, "बाबा, ये तो बासी रोटी है, पर अगर आपको मंजूर हो, तो खा लीजिए।"

बूढ़े ने रोटी ली और शांत मन से खाने लगा। खाना खत्म होने के बाद उसने चेतन की तरफ देखा और कहा, "तू बहुत अच्छा इंसान है। लोग कहते हैं कि तू बड़े-बड़े सपने देखता है। क्या सच में तेरे दिल में ऐसे सपने पलते हैं?"

चेतन ने शर्माते हुए कहा, "हाँ, बाबा। मैं जानता हूँ कि मैं गरीब हूँ, पर मैं चाहता हूँ कि एक दिन मेरा भी नाम हो। मेरे पास भी अपना घर, दौलत और एक अच्छा जीवन हो।"

बूढ़े ने एक गहरी साँस ली और चेतन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "तेरे सपने सच हो सकते हैं। लेकिन इसके लिए तुझे अपनी सबसे कीमती चीज़ त्यागनी होगी।"

चेतन चौंक गया। उसकी आँखें बड़ी हो गईं। "सबसे कीमती चीज़? लेकिन बाबा, मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। मैं गरीब हूँ।"

बूढ़ा हँसा और कहा, "हर इंसान के पास एक ऐसी चीज़ होती है जिसे वो सबसे ज्यादा महत्व देता है। कभी-कभी, हमें उस चीज़ को छोड़ना पड़ता है, ताकि हमें वो मिल सके, जो हम चाहते हैं।"

चेतन कुछ समझ नहीं पाया। "बाबा, मैं तो बस अपने सपने पूरे करना चाहता हूँ। मुझे नहीं पता कि मुझे क्या त्यागना पड़ेगा।"

बूढ़े ने जाते-जाते कहा, "जब वक्त आएगा, तुझे खुद पता चल जाएगा। बस, अपने सपनों का पीछा करना मत छोड़ना।"

बूढ़े के जाने के बाद चेतन के मन में तरह-तरह के सवाल उठने लगे। क्या उसकी सबसे कीमती चीज़ उसकी मेहनत थी? या उसका परिवार? या फिर उसके अपने ही सपने? वो उलझन में पड़ गया था।

कुछ दिनों तक चेतन ने अपने रोज़ के कामों में खुद को डुबो दिया, लेकिन बूढ़े की बात उसके दिमाग से हटने का नाम नहीं ले रही थी। उसका दिल हर पल उसे याद दिलाता कि उसे कुछ बड़ा करना है, लेकिन किसे छोड़ना है, ये समझ में नहीं आ रहा था।

एक दिन गाँव में मेला लगा। हर साल की तरह, चेतन भी वहाँ गया, लेकिन इस बार उसकी नज़रें कुछ और ही ढूंढ रही थीं। मेले में एक बड़े से पोस्टर पर लिखा था, "अगर आपके पास हिम्मत है तो अपने सपनों को सच करिए! जादुई दुकान में आएं और पाएं सफलता का रहस्य!"

चेतन ने उस पोस्टर को देखा और उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी पैदा हो गई। वो तुरंत उस दुकान की तरफ भागा। दुकान के अंदर घुसते ही उसने देखा कि वहाँ कोई सामान नहीं था, बस एक साधारण टेबल और पीछे बैठा वही बूढ़ा आदमी!

"बाबा! आप फिर यहाँ?" चेतन चौंकते हुए बोला।

बूढ़ा हँसते हुए बोला, "मैंने कहा था ना कि तुझे अपने सपनों को सच करने का रास्ता दिखाऊंगा।"

बूढ़े ने चेतन को एक शीशा दिया। "इसमें देख और बता कि तुझे क्या दिखाई दे रहा है।"

चेतन ने शीशे में झाँका। उसे खुद का अक्स दिखाई दिया—मगर वो गरीब नहीं था। वो एक बड़े बंगले में खड़ा था, उसके पास महँगी गाड़ियाँ थीं, लोग उसकी तारीफ कर रहे थे। मगर फिर अचानक उसने देखा कि उसकी आँखों में उदासी है, और वो हर किसी के सामने झुका हुआ खड़ा है।

चेतन चौंक गया। "ये क्या है बाबा? मैं खुश क्यों नहीं हूँ?"

बूढ़े ने गंभीर स्वर में कहा, "क्योंकि तूने वो खो दिया है जो सबसे कीमती था—तेरा आत्म-सम्मान। सपने पूरे करने के लिए तूने अपनी खुद्दारी को छोड़ दिया। तुझे दौलत तो मिल गई, मगर तू खुद से नज़रें मिलाने लायक नहीं रहा।"

चेतन समझ गया। उसे अब साफ हो गया था कि बूढ़ा क्या कहना चाहता था। सपने देखना बुरा नहीं था, लेकिन अगर उसे अपने आत्म-सम्मान को कुर्बान करना पड़े, तो वो सपने बेकार हैं।

चेतन ने दृढ़ निश्चय किया। उसने बूढ़े से कहा, "मैं अपने आत्म-सम्मान का त्याग नहीं कर सकता। चाहे मैं कितना भी गरीब रहूँ, लेकिन मैं झुककर कभी वो हासिल नहीं करना चाहता, जो मुझे खुद से दूर कर दे।"

बूढ़ा मुस्कुराया। "तूने सही रास्ता चुना है, बेटा। सपने बड़े होते हैं, मगर सबसे बड़ा सपना होता है कि इंसान खुद से प्यार करे और खुद पर गर्व महसूस करे।"

चेतन के दिल में शांति थी। उसने अपने सपनों का पीछा करने का फैसला नहीं छोड़ा, लेकिन अब वो जानता था कि उसे किस कीमत पर क्या हासिल करना है।

अगले दिन से चेतन ने एक नई सोच के साथ काम करना शुरू किया। उसने छोटे-छोटे कदम उठाए, अपने काम में ईमानदारी और मेहनत डाली, और धीरे-धीरे उसकी ज़िंदगी बदलने लगी। उसके पास दौलत नहीं थी, मगर उसकी आत्मा अमीर हो चुकी थी। लोग अब उसका सम्मान करने लगे थे, क्योंकि उसने अपना आत्म-सम्मान कभी खोने नहीं दिया।

चेतन के सपने बड़े थे, और उसे विश्वास था कि एक दिन वो जरूर पूरे होंगे। लेकिन अब वो जानता था कि असली खज़ाना दौलत नहीं, बल्कि खुद पर गर्व करना है।

आखिर में चेतन ने वो सबसे बड़ा सबक सीखा जो हर इंसान को जानना चाहिए—सपनों का पीछा करना ज़रूरी है, मगर कभी भी अपने आत्म-सम्मान की कीमत पर नहीं।

यदि कहानी पसंद आयी हो तो हमे रेटिंग देकर और भी अच्छी-अच्छी कहानियाँ लिखने के लिए प्रोत्साहित करें।

Next Post Previous Post