आज़ादी के बीज: Purane Jamane Ki Kahani

purane jamane me peepal ke niche charcha

पंजाब के एक छोटे से गाँव भटिंडा में सूरज सुबह की पहली किरण के साथ धीरे-धीरे उगता, जैसे एक गहरी नारंगी रंग की आँख, जो खेतों पर लंबी-लंबी छायाएँ बिखेरता। सुबह की ठंडी ताजगी में, जब धूल के छोटे-छोटे कण सूरज की किरणों में मानो नाच रहे होते, ध्रुव अपने साधारण कच्चे घर के दरवाजे पर खड़ा, उस चमकती धूल में कुछ और देखने का सपना संजोए रहता। बीस साल का ध्रुव, जो मेहनत में पकी हुई मिट्टी जैसा सख्त और अपने सपनों में कोमल था, अपने मन में एक अनजानी आग लिए, अपने गाँव से बाहर की दुनिया को जानना चाहता था।

गाँव में बचपन से ही उसे दूसरों से अलग माना जाता था, और यही शायद उसकी सबसे बड़ी पहचान भी थी। जहाँ बाकी गाँववाले अपनी फसलों, खेतों और मेहनत की बातें करते थे, वहीं ध्रुव किताबों, विचारों, और शिक्षा की ताकत पर चर्चा करता था। वह अक्सर गाँव के पीपल के पुराने पेड़ के नीचे बैठा हुआ सोचता – सोचता कि कब वो समय आएगा जब उसके गाँव के लोग भी अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे, जब उनके सपनों का खेत हकीकत की जमीन पर खड़ा होगा।

ध्रुव की माँ, कमला, जो दरवाजे के पास खड़ी रहती थी, बेटे की गहरी सोच में खोई आँखों को देखती। चेहरे पर चिंता की एक परत हमेशा बनी रहती। एक दिन, जब वह उसकी तरफ देख रही थी, उसने कहा, "ध्रुव, बेटा, पिता की मदद कर दो। खेतों में हर हाथ की जरूरत है।”

ध्रुव कुछ कहना चाहता था, उसकी आँखों में ख्वाब का एक टुकड़ा चमक रहा था। उसने धीरे से कहा, “माँ, क्या हमने बस यहीं तक सीमित रहना है? अगर हम कुछ और कर सकते तो? कुछ नया सीखते, और गाँव को बदलने की कोशिश करते…”

कमला उसकी बात पर हौले से मुस्कुराई, लेकिन उसकी आँखों में जैसे कड़वे अनुभवों का बोझ भी झलक रहा था। “बदलाव हर किसी के हिस्से में नहीं आता, बेटे। ये दुनिया बड़ी सख्त है, हमारे लिए कुछ खास नहीं सोचती। हमें अपनी ज़मीन से जुड़े रहना चाहिए, यही सच है।”

ध्रुव ने अपनी माँ की बात सुन ली, लेकिन दिल में एक हलचल बाकी थी। घर से निकलकर उसने दूर क्षितिज की ओर देखा, जहाँ कुछ झोपड़ियाँ थीं और एक मजबूत कद-काठी का व्यक्ति गाँव की ओर आता दिख रहा था। यह बाबा राम चंद्र थे, गाँव के एक ऐसे नेता जो लोगों के दिलों में साहस की लौ जलाने का काम करते थे। बाबा राम चंद्र का साहस, उनकी बातें, और उनका गाँव वालों को एकजुट करने का प्रयास, ये सब ध्रुव के मन में हलचल मचा देता था।

गाँव की एक शाम, जब सूरज ढलने लगा और आकाश पर हल्के गुलाबी रंग की चादर फैलने लगी, गाँव के चौक में एक बैठक रखी गई। चौक पर सब लोग जुटे थे, हर किसी की आँखों में उम्मीद और एक अनजानी बेचैनी थी। ध्रुव भीड़ में सबसे आगे खड़ा था, उसके दिल में अजीब सी धड़कन थी, एक भय और उत्साह का मिश्रण।

बाबा राम चंद्र ने भीड़ के सामने खड़े होकर बोलना शुरू किया, उनकी आवाज़ में जोश और हिम्मत का रंग था। “भाइयों और बहनों,” उन्होंने कहा, “अब वक्त आ गया है कि हम अपने हक के लिए खड़े हों। जो हमारी ज़मीन है, जो हमारा हक है, उसे हमसे छीनने का हक किसी को नहीं। हमें एकजुट होकर उनका सामना करना होगा।”

बातों का असर लोगों के चेहरे पर साफ था – कुछ के चेहरों पर डर था, तो कुछ की आँखों में उम्मीद झलक रही थी। ध्रुव की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। उसने बाबा से एक सवाल किया, “बाबा, हम कहाँ से शुरुआत करें? हमें लड़ने के लिए तैयारी कैसे करनी होगी?”

बाबा ने उसकी ओर देखा, जैसे उसकी बेचैनी को समझ गए हों। “बेटे, ज्ञान सबसे बड़ा हथियार है। अगर हम खुद को जानेंगे, अपने हक को पहचानेंगे, तो कोई हमें रोक नहीं सकता। साथ आओ, और सबको सिखाओ। हमारे पास यही एक रास्ता है।”

रात गहरी होने लगी, लेकिन ध्रुव के दिल में जैसे कोई बीज अंकुरित हो रहा था। उम्मीद का एक बीज।

कुछ हफ्तों बाद, असहयोग आंदोलन की आवाज़ें गाँव तक भी पहुँचने लगीं। भटिंडा के संकरे रास्तों में भी अब ब्रिटिश शासन के विरोध और स्थानीय उत्पादन के समर्थन की बातें गूँजने लगीं। एक अलग-सा जोश हर किसी के दिल में था, लेकिन डर भी साथ था, जैसे कोई हलचल अंधेरे में सिर उठा रही हो।

ध्रुव ने गाँव के अन्य युवाओं को अपने पास इकट्ठा किया और पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर उनसे चर्चा करने लगा। “हमें अब अपने हक के लिए आवाज़ उठानी है। हमें अपनी भारतीय पहचान की कद्र करनी है,” ध्रुव की आवाज़ में एक नया विश्वास था।

लेकिन हर किसी का यकीन इस बदलाव में नहीं था। उसका बचपन का दोस्त रंजीत मजाक बनाते हुए बोला, “क्या हम सच में इन अंग्रेजों से लड़ सकते हैं? उनके पास बंदूकें हैं और हमारे पास बस बातें।”

ध्रुव ने उसकी बात सुनी और फिर धीरे से कहा, “रंजीत, तुम्हारी बात सही हो सकती है, लेकिन अगर हमारे पास हौसला है, तो उनकी ताकत भी कमज़ोर पड़ेगी। याद रखो, जब हम एक साथ खड़े होते हैं, तो कुछ भी मुश्किल नहीं होता।”

जलियांवाला बाग हत्याकांड जैसी घटनाओं की खबरें गाँव में गूंजने लगीं। ध्रुव की माँ, कमला, जब इन घटनाओं के बारे में सुनती, तो उसकी आँखों में एक गहरी उदासी उतर आती। ध्रुव ने एक दिन माँ से कहा, “हमें उस शहादत को नहीं भूलना चाहिए, माँ। ये हमारी यादों का हिस्सा बन चुकी हैं।”

कमला ने धीरे से उत्तर दिया, “लेकिन बेटे, हम इतनी छोटी जगह से क्या कर सकते हैं?”

ध्रुव के भीतर एक जिद थी, उसने माँ की बात का जवाब देते हुए कहा, “हम यहाँ से शुरू कर सकते हैं। अगर हम अपने गाँववालों को शिक्षित करेंगे, उन्हें एकजुट करेंगे, तो हमारे गाँव की आवाज़ दूर-दूर तक गूँज उठेगी।”

जैसे-जैसे दिन बीतते गए, भटिंडा के लोग धीरे-धीरे अपने अधिकारों के लिए खड़े होने लगे। गाँव के चौक में महिलाएँ और बच्चे भी जुटने लगे, और अपनी परेशानियों पर चर्चा करते हुए अपनी ताकत को पहचानने लगे। ध्रुव ने महसूस किया कि यह संघर्ष सिर्फ पुरुषों का नहीं, बल्कि पूरे गाँव का था।

एक शाम की बैठक के बाद ध्रुव ने बाबा राम चंद्र से कहा, “बाबा, हमें एक बड़ा मार्च करना चाहिए। हमें अपनी एकता और शक्ति का परिचय देना होगा।”

बाबा ने उसकी आँखों में देख कर कहा, “तुम जानते हो कि ऐसा करना आसान नहीं होगा। क्या तुम सबकी सुरक्षा का भरोसा कर सकते हो?”

ध्रुव ने आत्मविश्वास से सिर हिलाया, “हमें डर कर पीछे नहीं हटना चाहिए। यह हमारे अधिकारों का सवाल है।”

मार्च के दिन, गाँव के लोग बैनर उठाए, हिम्मत के साथ बाहर निकले। यह दृश्य अद्भुत था, जैसे गाँव ने अपने सपनों को साकार करने के लिए साहस को पहना हो। रास्ते में कई लोग देखते रहे, कुछ तालियाँ बजाते तो कुछ डर से चुप रहते। जब वे गाँव के बाहर पहुँचे, तो पुलिसवालों की पंक्तियाँ सामने खड़ी थीं।

“अब क्या करें, बाबा?” ध्रुव ने घबराकर पूछा।

बाबा ने शांत स्वर में कहा, “हमारा संघर्ष अहिंसा का है। हम डट कर खड़े रहेंगे और अपनी माँगों को रखेंगे।”

भीड़ में एक महिला की आवाज़ गूंज उठी, “हम एक हैं! हम अपने हक के लिए खड़े हैं!” ध्रुव ने भी उस साहस से प्रेरणा ली और ऊँची आवाज़ में बोला, “हम डरने वालों में से नहीं हैं। हमारे पास साहस और एकता है। यह हमारे सपनों की लड़ाई है।”

मार्च ने गाँव में एक ऐसा जोश भर दिया था, जैसे बरसों से दबा हुआ ज्वालामुखी फट पड़ा हो। अब गाँव के हर कोने, हर घर, और हर दिल में बदलाव की बातें गूँजने लगी थीं। खेतों में काम करने वाले किसान, घरों में चूल्हा जलाने वाली महिलाएँ, यहाँ तक कि बच्चे भी अपने भविष्य की एक नई तस्वीर देखने लगे थे। ध्रुव ने उस दिन केवल एक मार्च नहीं किया था, बल्कि उसने अपने गाँव में सपनों की नई फसल बो दी थी, जो अब हर किसी के भीतर अंकुरित हो रही थी।

अब गाँव का हर व्यक्ति अपनी आवाज़ उठाने के लिए तैयार था। लोग अपने काम करते हुए भी आंदोलन की चर्चा करते, बैठकें करते, और अपने अधिकारों के बारे में सोचने लगे थे। चौपाल पर बैठने वाले बुजुर्ग, जिनके चेहरे पर सालों की धूप और मेहनत की लकीरें थीं, अब अपने अनुभव के साथ युवाओं को दिशा दिखाने लगे। वे कहानियाँ सुनाते कि कैसे उनके पूर्वजों ने अपनी जमीन को सींचा और अपने पसीने से हर कण को उपजाया। इन कहानियों में अब अधिकारों की लड़ाई का नया जोश भर गया था।

ध्रुव अब गाँव के लिए एक आदर्श बन चुका था। लोग उसे अपने बच्चों के भविष्य के लिए उम्मीद की तरह देखने लगे थे। उसकी बातों और साहस से प्रेरित होकर कई गाँवों ने भी भटिंडा का अनुसरण करते हुए अपने हक के लिए आवाज़ उठाना शुरू कर दिया। आस-पास के गाँवों से लोग ध्रुव से मिलने आते, उससे सीखना चाहते कि कैसे वह इतने लोगों को संगठित करने में सफल हुआ। ध्रुव ने हर गाँव के लोगों से यही कहा, “यह हमारी सामूहिक शक्ति का सवाल है। अकेले हम कमज़ोर हैं, लेकिन साथ मिलकर हम अजेय हैं।”

ध्रुव के साथ जुड़कर गाँव की महिलाओं ने भी एक नया हौसला पाया। पहले घर की चारदीवारी तक सीमित रहने वाली महिलाएँ अब बैठक में शामिल होने लगीं। वे अपनी परेशानियाँ साझा करतीं और अपने अधिकारों के बारे में सीखतीं। कमला, ध्रुव की माँ, इन महिलाओं को एकजुट करने में मदद करने लगी। वह अपनी माँ की भूमिका से निकलकर गाँव की एक नेत्री के रूप में उभर रही थी। अब वह महिलाओं को सिखाने लगी कि किस तरह उनके हाथों में भी गाँव के भविष्य को बदलने की ताकत है।

गाँव में हर सुबह की शुरुआत अब नए जोश के साथ होती थी। किसान अपने हल उठाते, लेकिन अब उनके मन में सिर्फ फसल का नहीं, बल्कि अपने हक और इज्जत का ख्याल होता था। चौपाल पर युवाओं का जमावड़ा बढ़ने लगा था, वे नए विचारों को लेकर चर्चाएँ करते, आंदोलन के अगले कदमों पर विचार करते, और अपने गाँव को एक नई दिशा देने के लिए प्रतिबद्ध होते।

ध्रुव का सपना अब किसी एक व्यक्ति का सपना नहीं रह गया था, बल्कि यह पूरे गाँव का सपना बन गया था। उसकी आँखों में जो उम्मीद की लौ जल रही थी, वह अब गाँव के हर इंसान की आँखों में जल रही थी। यह उम्मीद की वही लौ थी, जो भटिंडा की सीमाओं से निकलकर अब और भी कई गाँवों में फैलने लगी थी।

ध्रुव ने अपने गाँव को बदलते हुए देखा, और उसकी माँ कमला ने अपने बेटे को एक नई पहचान के साथ देखा। उसने ध्रुव को गले लगाते हुए कहा, “मुझे तुम पर गर्व है, बेटे। तुम्हारा साहस हमारे जीवन को बदल गया।”

ध्रुव ने मुस्कुराकर कहा, “यह सब हमारा ही संघर्ष था, माँ। हमने मिलकर इस गाँव को नया जीवन दिया है।”


भटिंडा में किसानों का संघर्ष रंग लाया: गाँव में नए बदलावों की बयार”

भटिंडा (अमृतसर संवाददाता), 24 मार्च 1921

भटिंडा के छोटे से गाँव में ध्रुव नाम के एक युवा किसान द्वारा आरंभ किए गए आंदोलन के परिणामस्वरूप अब पूरे क्षेत्र में बदलाव की हवा बह रही है। आंदोलन के बाद से शिक्षा, सामूहिक कृषि और महिलाओं के सशक्तिकरण के नए आयाम खुल गए हैं। गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि ऐसा बदलाव उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। अब गाँव में युवा और महिलाएँ संगठित होकर आजाद भारत की दिशा में बढ़ रहे हैं।

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