चीख: Ek Bhut Ki Kahani

ek bhutiya kila, bhut ki kahani

मैंने हमेशा सुना था कि अंधेरा और सन्नाटा कभी-कभी बहुत खतरनाक होते हैं। लेकिन मुझे क्या पता था कि यह सच्चाई मेरे लिए उस रात जानलेवा साबित होगी।

एक किला, जिसे "भूतिया किला" के नाम से जाना जाता है, मेरे गांव के सबसे ऊंचे पहाड़ पर स्थित था। इसकी दीवारें सदियों पुरानी थीं, और उसके पास एक दर्दनाक इतिहास था। कहा जाता है कि यह किला एक महान राजा ने बनवाया था, जो अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए हमेशा चौकस रहता था। लेकिन एक रात, एक दुश्मन सेना ने उस पर अचानक हमला किया। राजा और उसकी सेना ने पूरे साहस के साथ लड़ाई की, लेकिन दुश्मन की संख्या इतनी अधिक थी कि अंततः उन्हें हार माननी पड़ी।

इस किले के इतिहास में एक और दुखद अध्याय जुड़ा है। युद्ध के दौरान, राजा की पत्नी, जो कि एक जादूगरनी थी, ने अपने पति की जान बचाने के लिए एक खतरनाक जादू का सहारा लिया। लेकिन जादू की शक्ति ने भयंकर परिणाम दिए। वह खुद उस जादू में कैद हो गई, और उसके बाद से उसकी आत्मा किले में भटकने लगी। लोग कहते हैं कि उसकी आत्मा उस किले की दीवारों में बंद है और वह रात के सन्नाटे में अपने खोए हुए प्यार के लिए रोती है।

किले का नाम सुनते ही गांव के लोग हिचकिचाते थे। कई कहानियाँ प्रचलित थीं कि वहां रात में अजीब-अजीब आवाजें सुनाई देती हैं, और कई लोग जो वहां रात बिताने की कोशिश करते, वो कभी वापस नहीं लौटते। लेकिन यह सब केवल कहानियाँ थीं, जिनका कोई ठोस प्रमाण नहीं था।

यह सब उस ठंडी रात में शुरू हुआ जब मैंने अपने गांव के पुराने किले में रात बिताने का फैसला किया। असल में, इस फैसले के पीछे कई कारण थे जो धीरे-धीरे एक खतरनाक जिज्ञासा में बदल गए थे।

गांव में जन्मे-बड़े होने के बावजूद, मैं कभी उस किले में नहीं गया था। वह किला मेरे बचपन से ही रहस्यमयी कहानियों का केंद्र रहा था। गांव के बड़े-बुजुर्गों ने हमेशा किले को एक अंधेरे और भयावह स्थान के रूप में बताया था, जहां रात को जाने की मनाही थी। मेरे माता-पिता अक्सर कहते थे कि किले के अंदर एक बुरी ताकत है, जो वहां जाने वालों को कभी वापस नहीं आने देती। बचपन में ये बातें मुझे डराने के लिए काफी थीं, लेकिन बड़े होते-होते, मैंने इस तरह की बातों को अंधविश्वास मान लिया था।

पिछले कुछ दिनों से, गांव में किले के बारे में कई नई अफवाहें फैल रही थीं। लोग कह रहे थे कि रात में किले से अजीब-अजीब आवाजें सुनाई देती हैं। कुछ लोगों ने तो दावा किया कि उन्होंने वहां एक साया देखा है, जो हवा में तैरता हुआ दिखता है। इन बातों ने मेरे भीतर एक अजीब सी जिज्ञासा पैदा कर दी। मुझे लगा कि यह सब सिर्फ गांव वालों का डर है, और कुछ नहीं। मेरा मन यह जानने के लिए बेचैन हो गया कि आखिर इस किले में ऐसा क्या है, जिससे लोग इतना डरते हैं।

अगले दिन, मैंने अपने दोस्तों को अपने इस प्लान के बारे में बताया कि मैं किले में एक रात बिताना चाहता हूँ। उन्होंने यह सुनकर मुझे बहुत मना किया, और कहा कि यह मेरे लिए बहुत बड़ा खतरा हो सकता है। मेरे दोस्त करण ने कहा, "वो किला भूतिया है, यार। हमारे दादा-परदादा से सुना है कि वहां जाने वाला कभी सही-सलामत लौटकर नहीं आता।" लेकिन उनके डर से मुझे और अधिक चुनौती महसूस हुई। मुझे लगा कि शायद मैं ही वो पहला व्यक्ति होऊंगा, जो इस भूतिया किले की सच्चाई सबके सामने ला सकता है।

फिर, एक और वजह थी जिसने मुझे किले में रात बिताने के लिए प्रेरित किया। मुझे अजीब तरह के डर और सन्नाटे का सामना करने का शौक था। मेरे मन में यह बात घर कर गई थी कि वहां कुछ नहीं होगा, और अगर हुआ भी, तो मैं खुद पर काबू रख सकता हूँ। मैंने अपने भीतर एक अजीब सी हिम्मत महसूस की, जो मुझे रात को किले के उस सन्नाटे में जाने के लिए उकसा रही थी।

रात होने से पहले, मैंने अपने बैग में सिर्फ कुछ जरूरी चीजें रखीं – एक टॉर्च, एक पानी की बोतल, और अपनी डायरी जिसमें मैं सारी बातें लिखता था। मेरे पास उस किले में जाने का कोई खास कारण नहीं था, सिवाय इसके कि मुझे रहस्यों से घिरा वो स्थान अपने अंदर खींच रहा था।

जैसे ही रात गहरी होने लगी और चारों ओर ठंडी हवा चलने लगी, मैंने उस किले की ओर चलना शुरू कर दिया। गांव की पगडंडी से होते हुए मैं किले के पास पहुंचा। ऊपर चढ़ने के दौरान, मैंने महसूस किया कि जैसे किसी ने मुझे रोका हो, लेकिन मेरे कदम रुक नहीं रहे थे। मेरे मन में एक ही बात थी – आज मैं इस डर को खत्म करके रहूंगा। उस रात किले में जाने का फैसला शायद मेरे जीवन का सबसे बड़ा और सबसे भयानक फैसला साबित होने वाला था।

किले के दरवाजे के पास पहुंचते ही मैंने अंदर का नजारा देखा। विशाल दीवारें, जो कभी राजसी थीं, अब धीरे-धीरे जर्जर हो रही थीं।  वहां एक अद्भुत लेकिन डरावनी खामोशी महसूस हुई। दीवारों पर उकेरे गए पुरातन चित्रों को देखने पर ऐसा लग रहा था कि जैसे वे मुझसे कुछ कह रहे हों। कुछ चित्रों में राजा की वीरता, तो कुछ में उसकी पत्नी का विलाप दिख रहा था।

अंदर जाते ही, मैंने खुद को किले की कहानी में खोया हुआ पाया। दरवाजे पर खड़ा होकर, मैंने सोचा, "क्या यह सब सच है?" क्या वास्तव में यहां कोई आत्मा भटक रही है? लेकिन मेरे दिल में साहस था, और मैंने खुद को समझाया कि यह सब बस दिमागी बातें हैं।

जैसे ही मैं किले के भीतर और आगे बढ़ा, मेरे कदमों की आवाज गूंजने लगी। मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं, और मैंने अपने भीतर एक अजीब सा डर महसूस किया। फिर भी, मैंने अपनी जिज्ञासा को खत्म नहीं होने दिया और किले के एक कोने में जाकर बैठ गया।

मैंने धीरे से उस किताब को उठाया। उसका कवर बेहद पुराना और मटमैला था, जैसे सदियों से किसी ने उसे छुआ ही न हो। किताब पर कोई शीर्षक नहीं था, सिर्फ उस पर अजीब से घुमावदार प्रतीक बने हुए थे जो कुछ खास कह रहे थे, लेकिन समझ में नहीं आ रहे थे। मैंने किताब को खोलते हुए एक हल्की सी सिहरन महसूस की, जैसे कोई अदृश्य ऊर्जा मेरे हाथों को छू रही हो।

पहला पन्ना खोला, तो उस पर कुछ हाथ से लिखी हुई ताम्र पत्तियों जैसी लिखावटें थीं। शब्द थोड़े पुराने अंदाज़ में लिखे हुए थे, लेकिन मैंने ध्यान से पढ़ने की कोशिश की। उसमें लिखा था:

"जो भी इस किताब को पढ़ रहा है, उसके लिए एक चेतावनी है। यह किताब उन कहानियों से भरी हुई है जिन्हें जानने की अनुमति किसी इंसान को नहीं है। परंतु, अगर तुम इसे पढ़ना जारी रखते हो, तो तुम्हारी आत्मा भी इस किले की भटकती आत्माओं में शामिल हो सकती है। यह कहानी सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक श्राप है।"

यह पढ़कर मेरे हाथ कांपने लगे। मेरे दिमाग ने मुझे इसे बंद करने का इशारा किया, लेकिन मेरी जिज्ञासा और उस अजीब ऊर्जा ने मुझे रुकने नहीं दिया। मैंने खुद को समझाया कि यह सब पुराने समय की बकवास होगी, और मैंने आगे पढ़ना जारी रखा।

अगले कुछ पन्नों पर एक राजकुमार और एक जादूगरनी की कहानी थी, जो इस किले के बारे में थी। लिखा था कि इस किले का निर्माण उसी जादूगरनी ने किया था, और उसने अपनी आत्मा को यहां के पत्थरों में बाँध दिया था ताकि कोई भी बाहरी व्यक्ति यहां आकर किले के खज़ाने या इसके रहस्यों को न चुरा सके। जैसे ही मैंने यह पंक्तियाँ पढ़ीं, मुझे महसूस हुआ कि जैसे किसी ने मेरे कान के पास आकर कुछ फुसफुसाया हो।

मैंने जल्दी से पीछे मुड़कर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। फिर मैंने सोचा कि शायद थकान की वजह से मेरा मन भ्रम कर रहा है। मैंने खुद को शांत किया और आगे पढ़ना शुरू किया। किताब में आगे एक जगह लिखा था:

"अगर कोई इस किले में रात बिताने आए, तो उसे कभी भी किले की मध्य रेखा पार नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने पर उस पर किले का श्राप चढ़ जाएगा और वो अपनी मर्जी से यहां से कभी नहीं जा पाएगा।"

यह पढ़ते ही मुझे अहसास हुआ कि शायद मैं वही कर चुका था। मैं सोच में पड़ गया, "क्या वाकई यह सब सच हो सकता है? यह किला और यह श्राप... या यह सब सिर्फ एक काल्पनिक कहानी है?" लेकिन मेरे मन का वह डर अब और गहरा हो चुका था।

तभी मेरी टॉर्च अचानक बुझ गई। मैंने टॉर्च को झटका देने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं जली। अब चारों ओर गहरा अंधेरा छा गया था, और सन्नाटे में हल्की-हल्की सी सरसराहट सुनाई देने लगी। मैं घबराते हुए उठा और उस छोटी सी रोशनी की खोज में आगे बढ़ा, जो मुझे दीवार के कोने में दिखी थी। यह बहुत ही हल्की, लेकिन चमकदार रोशनी थी, मानो कोई दिया जल रहा हो।

जब मैं उस रोशनी के करीब पहुंचा, तो वहां एक खंडहर जैसा कमरा था, जिसके फर्श पर राख और हड्डियों का ढेर जमा हुआ था। मेरे कदम ठिठक गए। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने वहां सदियों पहले किसी बलि का अनुष्ठान किया हो। मेरे मन में सवाल उठे, "क्या यह वही जादूगरनी की आत्मा है, जो इस किले में कैद है?" मेरे शरीर में सिहरन दौड़ गई।

मैंने फिर से हिम्मत जुटाई और उस कमरे से निकलने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही मैं मुड़ा, मेरे पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर हल्के से हाथ रखा। मेरे शरीर में जैसे बिजली दौड़ गई। मैंने डरते हुए पीछे मुड़कर देखा। वहां कोई नहीं था, लेकिन मेरे कंधे पर अभी भी उस स्पर्श की ठंडक महसूस हो रही थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा है।

अब मेरे कानों में हल्की-हल्की फुसफुसाहट गूंजने लगीं। वो आवाजें इतनी धीमी थीं कि शब्द समझ में नहीं आ रहे थे, लेकिन उनमें डर और दर्द की गहरी गूंज थी। मुझे लगा कि शायद मैं पागल हो रहा हूँ। मैंने दौड़ते हुए बाहर जाने का फैसला किया।

लेकिन जैसे ही मैंने दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाया, एक जोरदार झटके के साथ दरवाजा अपने आप बंद हो गया। मैंने उसे धक्का देने की कोशिश की, लेकिन वह जैसे किसी ने अंदर से लॉक कर दिया हो। मेरे दिमाग में दोस्तों की चेतावनियां एक बार फिर से गूंजने लगीं - "किला भूतिया है, कोई भी यहां से लौटता नहीं है।"

अब मुझे एहसास हो रहा था कि मैं शायद एक जाल में फंस चुका हूँ। मैं वहाँ से भागना चाहता था पर नही भाग सका। मैं फिर से एक कोने मे बैठ गया। तभी मुझे होश आया की मैं तो कब से यहीं बैठा था, मेरे सिर मैं हल्का हल्का दर्द महसूस हुआ। क्या मैं जागते हुए सपना देख रहा था? शायद। लेकिन वह सब सच लग रहा था जैसे अभी मेरे साथ हुआ हो।

जैसे ही मैंने अपने सिर को झटका देकर चेतन पर काबू पाया, मेरी नजर फिर से उस किताब पर गई, जो अब भी मेरे हाथ में थी। मेरे दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गई थीं कि हर धड़कन की गूंज मेरे कानों में गड़गड़ा रही थी। मैंने अपनी उंगलियों को किताब के पन्नों पर धीरे-धीरे घुमाया और पढ़ना शुरू किया।

किताब के अगले पन्ने पर लिखा था:

"अगर तुम इस किले में रात बिताने आए हो, तो तुमने अपनी आत्मा को उस श्राप के हवाले कर दिया है जो सदियों से यहां का हिस्सा है। तुम्हारा डर और यहां बिताया गया हर पल तुम्हें इस श्राप की कड़ी में और जोड़ता जाएगा, जब तक कि तुम स्वयं इसका हिस्सा नहीं बन जाओगे।"

यह पढ़ते ही मेरी आंखें चौंधिया गईं। मुझे लगा जैसे कोई किताब के शब्दों को घूर रहा हो, जैसे वे मुझे चेतावनी दे रहे हों। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या है, पर मन में एक भारी बोझ महसूस हो रहा था, जैसे मेरे आसपास कोई अदृश्य परछाई मेरे हर कदम को देख रही हो। मैं बुरी तरह से बेचैन हो उठा, लेकिन जैसे ही मैंने पन्ना पलटा, मेरे हाथ में एक भयानक झटका लगा, जैसे किसी ने उसे जोर से पकड़ लिया हो।

अब किताब के पन्नों पर कुछ अजीबोगरीब चित्र बने हुए थे। एक चित्र में किले के भीतर बैठे किसी व्यक्ति की तस्वीर थी, जो हूबहू मुझ जैसा दिख रहा था। उसके चेहरे पर डर, घबराहट और असहायता की झलक थी। तस्वीर का हर हिस्सा, हर रेखा इतनी जीवंत थी कि मुझे लगा वह मुझे घूर रही है। मेरे हाथ से किताब फिसलते-फिसलते बची, लेकिन मेरे अंदर कुछ जानने की जिज्ञासा थी, जो मुझे किताब पढ़ने से रोक नहीं रही थी।

अगले पन्ने पर एक और तस्वीर थी। इस बार चित्र में एक जंजीरों से जकड़ा हुआ व्यक्ति दिख रहा था, जिसके चारों ओर अंधेरे में चेहरों का झुंड था - सबके चेहरे अजीब तरह से मुड़े हुए, बिना आंखों के गड्ढों वाले और खून से लथपथ। मेरे रोंगटे खड़े हो गए। पन्नों से बदबू का हल्का झोंका आया, जैसे कोई बहुत पुरानी और सड़ी हुई चीज से उठती है।

किताब के पन्नों को पढ़ते-पढ़ते मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। अब मेरे सिर में जोर का दर्द हो रहा था। मुझे महसूस हुआ कि जैसे कोई अदृश्य ताकत मेरे मन के भीतर घुस रही है। तभी अचानक किताब में लिखे शब्द अपने आप एक-एक कर गायब होने लगे, और पन्नों पर एक नया वाक्य उभर आया:

"तुम्हें यहां से भागने का कोई रास्ता नहीं मिलेगा। तुम्हारी हर कोशिश तुम्हें उसी जगह लौटाकर लाएगी। यही तुम्हारा भाग्य है। यही इस श्राप की सच्चाई है।"

यह पढ़कर मेरी सांसें रुक सी गईं। मेरी आंखों के सामने वही शब्द बार-बार तैरने लगे - "तुम्हें यहां से भागने का कोई रास्ता नहीं मिलेगा..." यह जैसे मेरे दिमाग में घुस गए थे। मैंने खुद को शांत करने की कोशिश की, पर जितना मैं इस जगह से बाहर निकलने के बारे में सोचता, मेरे शरीर पर किसी अनजानी शक्ति का दबाव बढ़ता जा रहा था।

अचानक मुझे महसूस हुआ कि कमरे में ठंडक और भी गहरी हो गई थी। अब मेरे सामने एक नया दृश्य था – मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि किले की दीवारें मेरे चारों ओर घूम रही हैं, जैसे वे मुझे बंद कर रही हों। मैंने खुद को भागने के लिए उठाया, लेकिन मेरी टाँगे जड़ हो गईं, मानो किसी ने उन्हें ज़मीन में गाड़ दिया हो।

तभी मेरी टॉर्च ने अचानक से जलना बंद कर दिया और घोर अंधेरा मेरे चारों ओर फैल गया। मैं पूरी तरह अकेला था, बस मेरे कानों में वही फुसफुसाहट गूंज रही थी। वो आवाजें अब और करीब आने लगीं - किसी के रोने और चीखने की आवाजें, किसी के फुसफुसाते हुए बोलने की आवाजें। मेरी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई।

मैंने अपनी पूरी ताकत लगाकर खुद को संभाला और टॉर्च को ठीक करने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने फिर से काम करना शुरू किया, मैंने देखा कि सामने की दीवार पर खून से लिखी कुछ पंक्तियाँ थीं:

"तुम अब हमारे हो, तुम्हारी हर सांस, तुम्हारा हर कदम हमारे साथ है। यहां से भागना मुमकिन नहीं है। अब तुम इस श्राप का हिस्सा हो।"

मेरे हाथ कांपने लगे। दीवार पर लिखे ये शब्द धीरे-धीरे धुंधले होकर गायब हो गए। मुझे समझ आ गया था कि ये सब महज कोई कहानी नहीं थी, बल्कि एक भयावह सच था। उस किताब में लिखा हर शब्द अब जैसे मेरी हकीकत बन चुका था।

मैंने तुरंत उस किताब को फेंक दिया, और अपनी आँख बंद कर सुबह होने का इंतजार करने लगा। मैं बहुत देर से सो रहा था, जब आँख खुली तो अभी भी रात थी। मैं हड़बड़ाकर उठा और गाँव की और भागने लगा। जब मेरे कदम गाँव पर पड़े तो अचानक कुत्ते मुझे देखकर भौंकने लगे, मैंने कुत्तों को भगाने के लिए पत्थर उठाने की कोशिश की लेकिन पत्थर नही उठा। 

मेरे हाथ अचानक ठंडे पड़ गए। ऐसा लगा जैसे पत्थर में कोई अदृश्य ताकत हो, जो मुझे उसे छूने से रोक रही हो। मेरी हथेलियों में अचानक एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई। मैं असमंजस में था कि आखिर ये सब हो क्या रहा है। तभी, अचानक दूर से किसी दरवाजे के चरमराने की आवाज आई। मेरी दिल की धड़कन तेज हो गई। आवाज रामधीर चाचा के घर की दिशा से आई थी। रामधीर चाचा, जो गाँव के सबसे पुराने और रहस्यमयी व्यक्ति थे। वो किले के बारे में कई बातें जानते थे और हमेशा चेतावनी देते रहते थे कि इस किले के भीतर अकेले न जाओ।

मैं घबराते हुए चाचा के घर की ओर दौड़ पड़ा, बिना यह देखे कि रास्ते में कितने मोड़ आ रहे हैं। लेकिन जैसे ही मैं वहाँ पहुँचा, मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं पलक झपकते ही वहाँ पहुँच गया था – बिना किसी ठोकर या थकान के। यह मेरे लिए असामान्य था, क्योंकि किले और रामधीर चाचा के घर के बीच का रास्ता लंबा और उबड़-खाबड़ था, लेकिन मुझे कुछ महसूस नहीं हुआ। मैंने बुरी तरह हाँफते हुए रामधीर चाचा को आवाज दी।

"रामधीर चाचा!" मैंने जोर से पुकारा। लेकिन अजीब बात यह थी कि मेरे गले से निकलने वाली आवाजें मानो सुनाई नहीं दे रही थीं। मैं बार-बार चाचा को पुकारता रहा, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। चाचा का घर सुनसान पड़ा था, जैसे वहाँ कोई न हो। मेरे मन में यह ख्याल आया कि शायद वो कहीं बाहर गए होंगे, लेकिन फिर यह समझ नहीं आ रहा था कि मैंने दरवाजा खुलने की आवाज क्यों सुनी?

मैं घर में कुछ कदम और अंदर गया, लेकिन वहाँ अजीब सी खामोशी थी। फिर, मैंने देखा कि चाचा सामने खड़े हैं, मगर उनकी आँखें कहीं और टिकी हुई थीं। उनका चेहरा भावहीन था, उनकी आँखें खाली थीं, जैसे वे किसी गहरी सोच में डूबे हों या फिर किसी और दुनिया में हों। मैंने डरते-डरते उन्हें फिर से आवाज दी, लेकिन उन्होंने मेरी तरफ देखा तक नहीं, जैसे मेरी उपस्थिति ही न हो। मेरे भीतर डर की लहर दौड़ गई। मैं चाचा के करीब गया और उनके कंधे पर हाथ रखने की कोशिश की, पर जैसे ही मेरा हाथ उनके कंधे को छूने वाला था, वो अचानक गायब हो गए, मानो उन्होंने हवा में घुल गए हों।

मेरे दिमाग में सवालों का तूफान उठ खड़ा हुआ, "क्या मैं फिर से कोई सपना देख रहा हूँ? क्या मैं अब भी उस किले में हूँ? या फिर मेरे साथ कुछ ऐसा हो रहा है जिसे समझना मेरे बस के बाहर है?"

अचानक, मैं दौड़ते हुए वापस किले की ओर लौट गया। मुझे लग रहा था कि अगर इस रहस्यमय अनुभव का कोई जवाब मिलेगा तो वह किले में ही मिलेगा। वहाँ पहुंचते ही मैं उस कोने में दौड़ा जहाँ मैं पहले बैठा हुआ था। लेकिन जैसे ही वहाँ पहुंचा, मेरी आँखें चौंधिया गईं – सामने का दृश्य मुझे अविश्वसनीय लगा।

मैंने देखा कि मैं अब भी उसी जगह बैठा हुआ था। यह कैसे हो सकता था? मैं खुद को वहाँ बैठा हुआ देख रहा था, जैसे मेरी आत्मा बाहर निकल आई हो और मेरे ही शरीर को देख रही हो। मेरी घबराहट अब चरम पर थी। मैं अपनी तरफ देखता रहा, वहीं बैठा हुआ, पथराई आँखों से आगे की ओर घूरता हुआ। मेरे होठ हिले, लेकिन कुछ भी बोलने की कोशिश बेकार थी।

तभी उस जगह की ठंडी हवा ने मेरे कानों में जैसे कोई अजीब सी फुसफुसाहट छोड़ दी। ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे अंदर ही अंदर मेरी आत्मा को पुकारा हो। वो आवाज धीरे-धीरे मेरे कानों में गूँजने लगी: "तुम यहाँ से भाग नहीं सकते। यह किला अब तुम्हारा नया घर है।"

वो आवाज बंद नही हो रहे थे, मैं जोर से चीखा, यह चीख इतनी तीव्र और खौफनाक थी कि मेरे अपने ही कानों में गूंजती रही, मानो वह मेरी आखिरी आवाज हो। लेकिन जैसे ही चीख बंद हुई, वहाँ सिर्फ सन्नाटा था। मैं अकेला, उस भूतिया किले के भीतर, समय और वास्तविकता के बंधनों से जैसे पूरी तरह आज़ाद हो चुका था। मेरे चारों ओर केवल अंधेरा था, जिसमें मेरी चेतना खो सी गई थी।

किले की दीवारें, जिनके बारे में मैं सोचता था कि वे सिर्फ पत्थर की बनी हैं, अब जीवित महसूस हो रही थीं, जैसे उनमें कोई अनदेखी शक्ति दौड़ रही हो। हवा में सर्द गंध और उस पुराने श्राप की गूँज मुझे महसूस होने लगी। मैं अपने ही अक्स को देख रहा था, जो कभी मुझसे छूटता नहीं था, वही स्थिरता, वही आँखें जो सच्चाई को अब पूरी तरह पहचान चुकी थीं। वह कोई भ्रम नहीं था – बल्कि अब मैं किले का एक हिस्सा बन चुका था, उसका अभिन्न अंग।

उस रात के बाद किसी ने मुझे फिर से नहीं देखा। गाँव के लोग धीरे-धीरे मेरी कहानी को उन कहानियों में जोड़कर भूल गए जो किले के डरावने रहस्यों का हिस्सा बन चुकी थी। अब हर रात, उस किले के अंधेरे कोने में से कोई चीख उठती है, मानो किसी खोए हुए की आत्मा अब भी बाहर आने की राह देख रही हो।

किला अब भी वहीं खड़ा है, लेकिन कोई भी वहां नहीं जाता। लोग कहते हैं कि रात में एक चीख सुनाई देती है।

यह मेरी चीख है, जो हमेशा के लिए उस अंधेरे में खो गई, और मेरी आत्मा आज भी भटक रही है।

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