नैतिकता का मूल्य (Prernadayak Kahani in Hindi)

Prernadayak Kahani in Hindi

गाँव का नाम भानपुर था। यह एक छोटा-सा गाँव था, जहाँ लोग सरल और मेहनती थे। यहाँ की खेती अच्छी थी, लेकिन गाँव की मुख्य समस्या यह थी कि सभी लोग अपने-अपने काम में इतने व्यस्त थे कि एक-दूसरे की मदद करने का समय ही नहीं मिलता था। गाँव की सीमा पर एक पुरानी नीम का पेड़ था, जिसके नीचे गाँव के कुछ बच्चे खेलते थे। वहीं पर एक छोटे से झोपड़े में, गाँव का विद्या, नीरज अपने पिता के साथ रहता था। नीरज एक होशियार और समझदार लड़का था, जिसे पढ़ाई का बहुत शौक था।

उसके पिता, भगवानदास, एक साधारण किसान थे। वे खेती करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे, लेकिन उनका सपना था कि उनका बेटा एक बड़ा आदमी बने। भगवानदास ने अपने बेटे को हमेशा सिखाया था, “बेटा, शिक्षा सबसे बड़ा धन है। यह तुम्हें हर मुसीबत से बचाएगी।”

नीरज ने अपने पिता के शब्दों को दिल से लिया। वह हर रोज़ सुबह जल्दी उठकर स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाता। वह अपने दोस्तों से अलग था। उसकी आँखों में एक चमक थी, जो उसके लक्ष्य को दर्शाती थी। उसके गाँव में एक सरकारी स्कूल था, जिसमें एक कड़क अध्यापक, श्री हरिचरण, पढ़ाते थे। हरिचरण जी शिक्षा के प्रति बेहद समर्पित थे और उन्हें अपने छात्रों से बहुत उम्मीदें थीं।

नीरज हमेशा उनकी उम्मीदों पर खरा उतरता था। वह कक्षा में हमेशा पहले आता था। उसकी मेहनत ने उसे गाँव में एक विशेष स्थान दिलाया था। उसके दोस्त और साथी उसे प्रेरणा का स्रोत मानते थे। लेकिन नीरज की मेहनत के साथ-साथ उसकी परिस्थितियाँ भी उसके लिए चुनौती थीं। उसके पास पढ़ाई के लिए ज़रूरी सामग्री नहीं थी।

एक दिन, स्कूल से लौटते वक्त नीरज ने देखा कि उसके दोस्त, चंदू और गंगा, खेतों में काम कर रहे हैं। उन्होंने उनकी मेहनत देखी और मन में विचार आया, “क्यों न मैं भी उन्हें मदद करूँ?” लेकिन उसके मन में एक द्वंद्व था। उसने सोचा, “अगर मैं उन्हें मदद करूंगा, तो मेरी पढ़ाई प्रभावित होगी। लेकिन क्या मुझे उनकी मदद नहीं करनी चाहिए?”

उसने अपने विचारों को तौलते हुए, चंदू और गंगा के पास जाकर कहा, “भाई, क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ?” चंदू ने मुस्कुराते हुए कहा, “नीरज, तुम पढ़ाई पर ध्यान दो, हमें खुद कर लेंगे।”

नीरज ने फिर भी उनके साथ काम करने का फैसला किया। वह खेत में गया और उनकी मदद करने लगा। उन्होंने मिलकर एक दिन में बहुत सारा काम किया। शाम को, जब नीरज घर लौट रहा था, तब उसके पिता ने पूछा, “बेटा, तुम स्कूल नहीं गए?”

नीरज ने कहा, “पिता जी, मैंने आज अपने दोस्तों की मदद की। मुझे लगा कि यह सही है।” भगवानदास ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, यह अच्छा है कि तुमने दोस्तों की मदद की, लेकिन पढ़ाई भी जरूरी है। तुम्हारी मेहनत का फल तुम्हें एक दिन अवश्य मिलेगा।”

गाँव में परीक्षा का समय आया। नीरज ने बहुत मेहनत की। उसने अपने सभी विषयों का अच्छी तरह से अध्ययन किया। लेकिन उसके मन में डर था कि क्या वह परीक्षा में अच्छा कर पाएगा? एक दिन, उसने अपने पिता से कहा, “पिता जी, मैं बहुत चिंता में हूँ। मुझे नहीं पता कि मैं परीक्षा में पास हो पाऊंगा या नहीं।”

भगवानदास ने अपने बेटे को प्यार से समझाया, “बेटा, चिंता करने से कुछ नहीं होगा। तुमने मेहनत की है, बस अपना सर्वश्रेष्ठ दो। सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी।”

नीरज ने अपने पिता की बातों को ध्यान में रखा और परीक्षा का सामना किया। उसने अपनी पूरी ताकत लगाई।

जब परीक्षा के परिणाम आए, तो नीरज को कक्षा में पहले स्थान पर रखा गया। गाँव में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी ने नीरज की सराहना की। चंदू और गंगा ने भी उसकी सफलता का जश्न मनाया। नीरज ने अपने पिता को गले लगाया और कहा, “पिता जी, आपकी मेहनत और प्रेरणा का फल मिला। मैं हमेशा आपकी बातों को याद रखूँगा।”

भगवानदास ने कहा, “बेटा, यह सफलता केवल तुम्हारी नहीं, बल्कि तुम्हारे दोस्तों और गाँव की भी है। हमें हमेशा एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।”

नीरज की सफलता के बाद, उसने कॉलेज में दाखिला लिया। वहाँ उसकी मुलाकात एक नए दोस्त से हुई, जिसका नाम था मोहन। मोहन एक समृद्ध परिवार से था, लेकिन उसकी पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी। वह केवल मौज-मस्ती करने में व्यस्त था। नीरज ने मोहन को समझाया, “तुम्हें पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। शिक्षा ही तुम्हारा भविष्य है।”

मोहन ने हंसते हुए कहा, “मुझे क्या फर्क पड़ता है? मेरे पास पैसे हैं। मैं कुछ भी कर सकता हूँ।”

नीरज ने सोचा, “क्या मोहन का यह दृष्टिकोण सही है?”

एक दिन मोहन ने नीरज से कहा, “चलो, आज हम कोई मजेदार काम करते हैं। पढ़ाई में क्या रखा है?” लेकिन नीरज ने उसकी बातों को नजरअंदाज कर दिया। उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी। कुछ समय बाद, मोहन के परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। उसकी सारी संपत्ति धीरे-धीरे खत्म हो गई। मोहन को समझ में आया कि बिना शिक्षा के उसकी जिंदगी अधूरी है।

नीरज ने मोहन की मदद की और उसे पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। धीरे-धीरे मोहन ने अपनी गलती स्वीकार की और नीरज के साथ पढ़ाई में मन लगाना शुरू किया।

नीरज ने अपने जीवन से सिखा कि शिक्षा केवल डिग्री नहीं है, बल्कि यह जीवन की वास्तविकता है। उसने मोहन को सिखाया कि नैतिकता और एक-दूसरे की मदद करने से ही व्यक्ति सच्चे अर्थों में सफल होता है।

गाँव में अब लोग नीरज को देखकर प्रेरित होते थे। उन्होंने नीरज की तरह अपने बच्चों को पढ़ाई की अहमियत समझाई। गाँव के लोग एक-दूसरे की मदद करने लगे। गाँव में एक नया माहौल बनने लगा।

कई सालों बाद, नीरज ने एक शिक्षित और सफल व्यक्ति के रूप में गाँव में पहचान बनाई। उसने गाँव के बच्चों के लिए एक स्कूल खोला, जहाँ सभी बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती थी। मोहन भी अब एक अच्छे शिक्षक बन चुके थे।

नीरज और मोहन ने मिलकर गाँव में नैतिकता और शिक्षा का एक नया मानक स्थापित किया। उन्होंने यह साबित कर दिया कि शिक्षा और नैतिकता का एक सही संयोजन ही सच्ची सफलता की कुंजी है।

गाँव के लोग कहते थे, “नीरज ने हमें यह सिखाया कि हम न केवल अपने लिए जीते हैं, बल्कि हमें एक-दूसरे की मदद करके आगे बढ़ना चाहिए।”

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